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अब खत्म कर देना चाहिए वर्ण-जाति व्यवस्था कोः भागवत

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अब खत्म कर देना चाहिए वर्ण-जाति व्यवस्था कोः भागवत

सामाजिक//Maharashtra/Nagpur :

सामाजिक समानता भारतीय परंपरा का एक हिस्सा था लेकिन इसे भुला दिया गया और इसके हानिकारक परिणाम समाने आए। जरूरत इस बात की है कि जो कुछ भी भेदभाव का कारण बनता है, उसे व्यवस्था से बाहर कर देना चाहिए। यह कहना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख यानी सरसंघचालक मोहन भागवत का।

शुक्रवार, 7 अक्टूबर को नागपुर में एक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि 'वर्ण' और 'जाति' को पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए। जाति व्यवस्था की अब कोई प्रासंगिकता नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पिछली पीढ़ियों ने भारत सहित हर जगह गलतियाँ कीं। आगे भागवत ने कहा कि उन गलतियों को स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं है जो हमारे पूर्वजों ने की हैं।


हाल ही में जारी हुई डॉ मदन कुलकर्णी और डॉ रेणुका बोकारे की किताब "वज्रसुची तुंक" का हवाला देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि सामाजिक समानता भारतीय परंपरा का एक हिस्सा था लेकिन इसे भुला दिया गया और इसके हानिकारक परिणाम हुए।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि जो कुछ भी भेदभाव का कारण बनता है, उसे व्यवस्था से बाहर कर देना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि भागवत ने सितंबर में मुस्लिम संगठनों के कई मौलवियों के साथ बैठक की थी और दिल्ली में तो एक मस्जिद और मदरसे का दौरा भी किया था। जिसके बाद उन्होंने कहा था कि अल्पसंख्यक खतरे में नहीं हैं, हिंदुत्ववादी संगठन उनके डर को खत्म करने के लिए काम करते रहेंगे। हालांकि संघ स्थापना दिवस यानी विजयादशमी के मौके पर नागपुर में उन्होंने जनसंख्या पर अपनी राय रखते हुए कहा था कि देश में जनसंख्या का सही संतुलन जरूरी है। उन्होंने कहा था, ‘हमें यह ध्यान रखना होगा कि अपने देश का पर्यावरण कितने लोगों को खिला सकता है, कितने लोगों को झेल सकता है। यह केवल देश का प्रश्न नहीं है। जन्म देने वाली माता का भी प्रश्न है। उन्होंने कहा, जनसंख्या की एक समग्र नीति बने, वह सब पर समान रूप से लागू हो। उस नीति से किसी को छूट न मिले।‘

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राकेश रंजन

By News Thikhana

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