आज मां दुर्गा के चौथे स्वरूप माँ कुष्मांडा की साधना कर
धर्म/कर्मकांड-पूजा/Rajasthan/Jaipur :
Shardiya Navratri 2023 Day 4 "
नवरात्रि की चतुर्थ तिथि को मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा का विधान है। इस साल शारदीय नवरात्रि का चौथा नवरात्र 2023 को है। मान्यता है कि जो कोई नवरात्रि के चौथे दिन विधिवत मां कुष्मांडा की आराधना करता है उसे जीवन में यश, दीर्घायु, बल और आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है। शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि इस संसार की रचना देवी ने अपनी मंद मुस्कान से की थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी कुष्मांडा के शरीर की चमक सूर्य के समान है। मान्यता है कि जो कोई सच्चे मन से देवी कुष्मांडा की पूजा-पाठ करता है उससे मां प्रसन्न होकर समस्त रोग-शोक का नाश कर देती हैं। साथ ही इनकी भक्ति से मनुष्य के बल, आयु, यश और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
कूष्मांडा मां का स्वरूप
मां कुष्मांडा की 8 भुजाएं होने के कारण भक्त इन्हे अष्टभुजा के नाम से भी पुकारते हैं। इनके आठ भुजाओं में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प,अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा और निधियों से युक्त जप की माला है। इनका वाहन सिंह है। मां कुष्मांडा का वास सूर्यमंडल के भीतर है। इनके आठवें हाथ में सभी तरह की ऋद्धियाँ सिद्धियां देने वाली जप की माला है।
कूष्मांडा की पूजा विधि
शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन सुबह उठकर साफ कपड़े पहनें और देवी मां के चौथे स्वरुप का ध्यान करें। देवी कूष्मांडा की पूजा करते समय पीले रंग के वस्त्र पहनें। मां कुष्मांडा को पीला रंग प्रिय है। पूजा के समय देवी को चंदन, कुमकुम, मौली, अक्षत चढ़ाएं। फिर पान के पत्ते पर थोड़ा सा केसर लेकर ऊँ बृं बृहस्पते नम: मंत्र का जाप करते हुए देवी को अर्पित करें। शास्त्रों में निहित है कि मां कूष्मांडा को मालपुए पसंद है,अतः मां को प्रसाद में मालपुए जरूर भेंट करें। दुर्गा सप्तशती या सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें। माना जाता है कि कुष्मांडा माता की पूजा करने से बुद्धि में वृद्धि होती है। अगर कोई लंबे समय से बीमार है, तो मां कूष्मांडा की विधि-विधान से की गई पूजा उस व्यक्ति को अच्छी सेहत देती है।
मां कुष्मांडा की कथा
हिन्दू धर्म मान्यताओं के अनुसार, मां दुर्गा के चौथे स्वरूप को देवी कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है। इन देवी का अवतरण असुरों का संहार करने के लिए हुआ था। वहीं माना जाता है कि जब इस संसार का अस्तित्व नहीं था और चारों ओर अंधेरा छाया हुआ था तब इस सृष्टि को उत्पन्न करने के कारण देवी के चौथे स्वरूप को मां कूष्माण्डा के नाम से जाना गया। इसी कारण मां कुष्मांडा को ही आदिस्वरूपा कहा गया है। क्रमशः कमंडल, धनुष बांण, शंख, चक्र, गदा, सिद्धियां, निधियों से युक्त जप की माला और अमृत कलश सुशोभित हैं।
माँ कूष्माण्डा को ये लगाएं भोग
मां कूष्मांडा सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदि शक्ति हैं, माता रानी को मालपुए का भोग लगाना काफी सही माना जाता है।इसके अलावा माँ कूष्माण्डा को कुम्हड़ा यानि कद्दू बेहद प्रिय माना जाता है,अतः इस दिन कुम्हड़ा का भोग भी अति उत्तम माना जाता है।
मां कुष्मांडा का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
Comments