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भ्रष्टाचार रोकने वाला ही बना भ्रष्टाचारी...! डीआईजी विष्णुकांत समेत कई अफसरों पर आरोप

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भ्रष्टाचार रोकने वाला ही बना भ्रष्टाचारी...! डीआईजी विष्णुकांत समेत कई अफसरों पर आरोप

क्राइम //Rajasthan/Jaipur :

भ्रष्ट अधिकारियों को दबोचने वाली और भ्रष्टाचार के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई करने वाली एसीबी के ही एक तत्कालीन डीआईजी पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगे हैं और एसीबी ने एफआईआर भी दर्ज की है।

भ्रष्ट अधिकारियों को दबोचने वाली और भ्रष्टाचार के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई करने वाली एसीबी के ही एक तत्कालीन डीआईजी पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगे हैं। न केवल आरोप लगे हैं बल्कि एसीबी ने खुद एफआईआर भी दर्ज की है। मामला जुड़ा हुआ है, एसीबी के तत्कालीन डीआईजी विष्णुकांत से। इन्होंने भ्रष्टाचार के एक मामले में एक हेड कांस्टेबल का नाम एफआईआर से निकालने और उसे अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए 9.50 लाख रुपए की रिश्वत ली। एफआईआर में से हेड कांस्टेबल का नाम निकालने के पूरे प्रकरण को लेकर परिवादी सत्यपाल पारीक ने राजस्थान के डीजीपी को परिवाद भेज अवगत कराया।
जिस पर डीजीपी ने 11 जनवरी, 2023 को एसीबी को परिवाद भेज कर उसकी जांच करने के निर्देश दिए। एसीबी द्वारा परिवाद की जांच की गई साथ ही परिवादी द्वारा जो भी सबूत उपलब्ध कराए गए उनकी एफएसएल जांच कराई गई, जिसकी रिपोर्ट व अन्य तमाम तथ्यों को मद्देनजर नजर रखते हुए 1 मई, 2024 को एसीबी में एफआईआर दर्ज की गई। एसीबी ने आईजी विष्णुकांत, हेड कांस्टेबल सरदार सिंह और कांस्टेबल प्रताप सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उसकी जांच स्पेशल इन्वेस्टिगेशन विंग के एसीपी सुनील सियाग को दी है।
वर्ष 2021 में एसीबी ने ट्रैप करते हुए जवाहर सर्किल थाने के हेड कांस्टेबल सरदार सिंह और सिपाही लोकेश को रिश्वत राशि लेते हुए गिरफ्तार किया था। प्रकरण में से हेड कांस्टेबल सरदार सिंह का नाम निकालने के लिए एसीबी के तत्कालीन डीआईजी और वर्तमान में होमगार्ड आईजी विष्णुकांत से संपर्क किया गया।
हेड कांस्टेबल सरदार सिंह का भाई कांस्टेबल प्रताप सिंह पूर्व में विष्णु कांत का गनमैन रह चुका था। ऐसे में उसने विष्णु कांत से संपर्क कर मदद मांगी और अपने बड़े भाई सरदार सिंह का नाम एफआईआर में से हटाने की गुहार लगाई। परिवादी ने आरोप लगाए हैं कि तत्कालीन डीआईजी विष्णुकांत ने एसीबी के तत्कालीन डीजी बीएल सोनी के नाम पर 25 लाख रुपए की मांग की और बाद में सौदा 10 लाख रुपए में तय हुआ।
इसके बाद कांस्टेबल प्रताप सिंह ने डीआईजी विष्णुकांत को 9.50 लाख रुपए रिश्वत के रूप में दिए और उसके बाद एसीबी ने अपनी एफआईआर में से हेड कांस्टेबल सरदार सिंह का नाम निकाल दिया। एफआईआर में से नाम निकालने का अधिकार केवल डीजी और एडीजी स्तर के अधिकारी को ही होता है। ऐसे में तत्कालीन डीजी और एडीजी की भूमिका भी इस पूरे मामले में संदिग्ध मानी जा रही है।
एफआईआर में से हेड कांस्टेबल का नाम निकालने की बात जब परिवादी सत्यपाल पारीक को पता चली तो उसने अपने स्तर पर तमाम सबूत जुटाए। परिवादी ने जांच के लिए एसीबी को कुल 9 ऑडियो और वीडियो क्लिप उपलब्ध कराए, जिसमें तत्कालीन डीआईजी विष्णुकांत और कांस्टेबल प्रताप सिंह के बीच हुई वार्ता के फुटेज थे। साथ ही, परिवादी सत्यपाल पारीक, हेड कांस्टेबल सरदार सिंह, कांस्टेबल प्रताप सिंह और रवि कुमार के बीच में हुई वार्ता की वीडियो रिकॉर्डिंग और अन्य क्लिप शामिल हैं। वहीं, परिवादी ने तत्कालीन डीआईजी विष्णुकांत, हेड कांस्टेबल सरदार सिंह और कांस्टेबल प्रताप सिंह के बीच हुई वार्ता की वॉइस क्लिप भी एसीबी को जांच के लिए उपलब्ध करवाए।
परिवादी द्वारा दिए गए तमाम सबूतों का एफएसएल परीक्षण कराया गया, जिसके बाद अब जाकर तत्कालीन डीआईजी विष्णुकांत, हेड कांस्टेबल सरदार सिंह और कांस्टेबल प्रताप सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7, 8 और 12 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।

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Jyoti Bala

By News Thikhana

Senior Sub Editor

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