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विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर विशेष व्यंग्य आलेखः  धूम्र- छल्लों का रोमान

धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, कृपया इसका सेवन ना करें

साहित्य

विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर विशेष व्यंग्य आलेखः धूम्र- छल्लों का रोमान

साहित्य/व्यंग्य लेख/Tamil Nadu/Chennai :

 राजकुमार सिद्धार्थ प्रासाद से निकलकर उद्यान में विचरण कर रहे थे। भौतिक विलास से दूर उनके एकांतिक मन में इच्छा जागृत हुई कि जनसाधारण के दुख-सुख से साक्षात्कार किया जाए। उन्होंने सारथी को बुलवाया। कहा- 'प्रियात्मन्, साधारण जन से साक्षात्कार की इच्छा से ही आपको कष्ट दिया है। इसके लिए न रथ की आवश्यकता है, न राजसी वेशभूषा की।"जो आज्ञा ।' कहकर सारथी उनके साथ चल पड़े।

लौहपथगामिनी के साधारण यात्री प्रकोष्ठ में वे विराजमान हुए। बोले-'प्रियवर, ये साधारण से जन मुख से धूम्र क्यों उगल रहे हैं? आपने तो कहा था कि गाड़ियों के धुआँ उगलने वाले एंजिन भी अब बाहर कर दिये गये हैं, मगर प्रजा-जन तो मुँह से धुआँ उगल रहे हैं।' सारथी ने कहा- 'युवराज, ये तम्बाकू से बनी बीड़ी से धूम्रपान कर रहे हैं। जो थोड़े सभ्य हैं, वे सिगरेट पीते हैं और परम सभ्य सिगार पीते हैं।'
         राजकुमार ने पूछा- 'यह धूम्र जब पास में बैठने मात्र से आहत कर रहा है तो पीने वालों को न करता होगा ?' सारथी ने कहा-'आप सत्य कह रहे हैं। उधर देखिए, वे निरन्तर खाँस रहे हैं, श्वास से पीड़ित हैं। इसीलिए राज्य की ओर से धूम्रपान निषेध की पट्टिकाएँ लगायी गयी हैं।'
            राजकुमार जैसे ही यात्रिका से उतरे, मुख्य मार्ग की दुकानों को निहारते हुए बोले- 'आत्मन्, ये ताम्बूलवाहिनियों पर बंदनवारें कैसी सजी हैं?' सारथी ने कहा-'देव, लोकवाणी में इन्हें गुटका और विदेशी वाणी में 'पाउच' कहते हैं। साधारण जन शाकाहारी किस्म का और मर्दाना लोग तम्बाकूयुक्त गुटके से हर घड़ी ऊर्जा प्राप्ति के लिए बेचैन हो जाते हैं।' तभी राजकुमार का ध्यान दीवारों पर गया। सारथी ने तपाक से कहा-'पान-गुटके के बाद लगातार पिच्च पिच्च से दीवारों की संस्कृति ही बदल गयी है।' गंदगी से बदहवास होकर राजकुमार आगे बढ़ लिए।
         तब वे एक राज्य कार्यालय में पहुँचे। द्वारपाल हथेली पर तम्बाकू और चूना रगड़ रहा था। घूर कर उनकी ओर देखा। फिर फट्-फट् करते हुए गुटके को अधरोष्ठ और दाँतों के बीच उड़ेल दिया। विलम्ब से आहत होकर सारथी ने द्वारपाल से पूछा। आँखें तरेरते हुए द्वारपाल कोने में जाकर पिच्च कर आया।राजकुमार  ने पूछा-'यह क्या खा रहा है ?' सारथी ने कहा- 'देव, यह भी तम्बाकू चूर्णिका है। महँगे पान का समाजवादी संस्करण। आम या खास आदमी इसका उपयोग आम जगह कर लेता है। अब तो यह सभी जातियों, वर्गों, दलों में जगह बनाकर सर्वनिरपेक्ष हो गया है।' राजकुमार ने पूछा-'मगर इसका लाभ क्या है ?' सारथी ने कहा-'देव!लाभ-अलाभ की बात नहीं है। साधारण प्रजा से लेकर राज्यकर्मी भी इतने चक्करों में उलझे रहते हैं कि यह गुटका ही उनमें नयी ऊर्जा का संचार करता रहता है। शरीर की टूटन के समय यह शक्ति का लौटालक है। बैर-विरोध में यारी का जोड़क है। काम न बनने की स्थिति में काम - बनावक है।' राजकुमार ने पूछा- 'प्रियात्मन्, आप तो ऐसे मोहित हैं, जैसे कोई दिव्य औषधि हो। पर क्या यह स्वास्थ्यप्रद है ?' सारथी ने कहा-'नहीं देव, जैसे हिम, तुषार, उपल आदि जल ही के संस्करण हैं, उसी तरह सभी खतरनाक तम्बाकू के ही विविध संस्करण हैं।'
          राजकुमार और सारथी भीतर प्रविष्ट हुए। लिपिक महोदय हथेली में तम्बाकू-चूना रगड़ रहे थे। फिर अधिकारी को प्रस्तुत किया। राजकुमार ने अधिकारी से कुछ पूछना चाहा, मगर उनके फूले हुए मुखमंडल और पिच्च मुद्रा को पहचानते हुए बाहर निकल आए। फिर सारथी से पूछा- 'यह लिपिक चूना क्यों लगा रहा था ?' सारथी ने कहा- 'देव, कार्यालयों में चूना लगाये बगैर काम सम्पन्न नहीं होते।'
          बाहर निकलते ही राजकुमार का ध्यान वाहनों की पंक्तियों पर गया। पूछा- 'इतने वाहन यहाँ क्यों खड़े हैं ?' सारथी ने कहा-'देव, यहाँ देश-देशान्तर के खिलाड़ियों के बीच क्रिकेट हो रहा है।' राजकुमार ने पूछा- 'इतने विशाल आयोजनों के लिए धन कैसे आता होगा ?' सारथी ने कहा- 'कई तम्बाकू सिगरेट उद्योग इन्हें प्रायोजित करते हैं।' धूम्रदण्डिका का एक विज्ञापन देखते हुए उन्हें लग रहा था, जैसे धूम्रदण्डिका पीने वालों में ही पौरुष होता है, वर्ना...
        ‌कुछ अन्तराल विश्राम करते हुए वे एक चिकित्सालय में पहुँचे अनेक रोगियों को एक विशेष प्रकोष्ठ में त्रस्त देखकर पूछा-'इन्हें क्या हो गया है ?' सारथी ने कहा-'देव इन्हें कैंसर हो गया है। कई बार तम्बाकू से कैंसर हो जाता है।' द्रवित राजकुमार वहाँ टिक न पाए। मार्ग में पूछा- 'यह रोग हमारे राज्य में ही है ?' सारथी ने कहा-'नहीं युवराज, विश्व के अनेक देश इस रोग से पीड़ित हैं।'
             द्रवित पीड़ित राजकुमार प्रासाद में लौटे। वे रात्रि पर्यन्त शयन नहीं कर पाए। राजकुमार की विषादपूर्ण मुखमुद्रा को देख महाराज ने सारथी से विवरण प्राप्त किया। फिर राज्यसभा में राजकुमार नेकहा- 'राजन्, यह तम्बाकू अनेक रोगों की जननी है। इस पर तत्काल रोक श्रेयस्कर होगी।' महाराज ने कहा- 'वत्स, यह राजाज्ञा साधारण नहीं है। इससे कोटि-कोटि लक्ष मुद्राओं की राजस्व हानि होगी। अनेक उद्योग बंद हो जाएँगे। लोग बेरोजगार हो जाएँगे। क्रिकेट के प्रायोजक नहीं मिलेंगे। निर्यात के अभाव में विदेशी मुद्रा की हानि होगी। फिर यह तो पूरे विश्व की समस्या है।'
       ‌‌         राजकुमार व्यग्र हो गये। बोले-'इतने असाध्य रोगों और करुण मृत्युओं के बाद भी तम्बाकू जीवन यात्रा की संजीवनी बनी रहेगी ?' महाराज ने शान्त स्वर में कहा-'वत्स, हमने अनेक उपाय किये हैं। तम्बाकू निर्मित प्रत्येक उत्पाद पर छापना अनिवार्य कर दिया है कि तम्बाकू स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।'
               लेकिन राजकुमार के मुखमंडल पर आश्वस्ति का भाव नहीं उभर पाया। उनकी आँखों मेंपिछली यात्रा के चित्र संसार को तम्बाकूमय बना रहे थे। उनकी चिन्ताओं को समझते हुए एक अमात्य ने कहा- 'देव, यहाँ समय-समय तम्बाकू निषेध दिवस भी मनाये जाते हैं।' मगर राजकुमार की चिन्ताओं को समझते हुए सारथी ने कहा- 'देव, समय-समय पर उपभोक्ता संरक्षण सप्ताह, ऊर्जा बचत सप्ताह, यातायात सप्ताह की तरह रोज ही कोई न कोई दिवस मनता है। पर दिवस सप्ताह बीता नहीं कि ढाक के तीन पात हरे हो जाते हैं।'
            सारथी ने कटाक्षवाणी को नरमीली करते हुए प्रधान अमात्य से कहा-'युवराज, हमने लोगों में चेतना उत्पन्न करने के लिए भाषण, निबन्ध आदि प्रतियोगिताएँ आयोजित करवाई हैं। हम विज्ञापन भी देंगे।' मगर सारथी तब भी चिंतित थे, उत्तेजित भी। बोले-'लेकिन देव, घर-घर में दूरदर्शनी सुन्दर आकृतियाँ जब धूम्र छल्ले बनाती हैं तो दर्शकों में भी नशीले रोमांच की भंगिमाएँ तैरने लगती हैं। नशीले स्वादिष्ट चटखारे अपनी जादुई अदाओं से बहलाते हैं। तब मन के सारे तटबंध बह जाते हैं और ये उपाय... ।'
       तभी सारथी की नजरें महाराज की भृकुटियों से टकराई। वाणी को एकाएक वल्गा मिल गई। राजकुमार की चिन्ता सघन होती जा रही थी, इस सन्नाटे ने उसे गहनतर बना दिया। कोई समाधान न निकलते देख राजकुमार सिद्धार्थ तम्बाकूजनित दुखों से संसार को मुक्त कराने के लिए व्यग्र होकर एकान्त की ओर प्रस्थित हो गये।


 

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बीएल आच्छा

By News Thikhana

विभिन्न शैलियों में साहित्यिक लेखन के माध्यम से अनेक पत्र-पत्रिकाओं में सक्रिय रहने वाले बीएल आच्छा वर्तमान में चेन्नई में रहते हैं और वे मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा के कार्यक्षेत्र से संबद्ध रहे हैं।

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