लेख/व्यंग्य/Madhya Pradesh/Jaipur :
ट्रिन ट्रिन
हेलो
मैं बोल रहा हूँ I
नमस्ते सर, हुकूम कीजिए I
क्या ख़ाक हुकूम ! अभी तक काम शुरू नहीं हुआ, निपटा-निपटूं दो, क्यों देर कर रहे हो?
परन्तु सर !
मारो गोली, किन्तु-परन्तु को I जो कहा सो कर डालो, कर दो सूपड़ा साफ I
समझने का प्रयास कीजिए सर ! इश्यु बन जाएगा I पोलिटिकल अपोजिशन होगा I
मुसलमान थोड़े ना है I
नहीं सर, वो बात नहीं है,
अरे भई, दलित भी नहीं है I
परन्तु सर !
अरे यार, मुस्लिम नहीं, दलित नहीं, रोहिंग्या नहीं, बंगलादेशी नहीं, टिकैत नहीं, ईसाई भी नहीं, फिर क्यों नाहक डर रहे हो I तुम तो ऐसे बर्ताव कर रहे हो जैसे पहली बार इनकाउण्टर कर रहे हो I
सर ! आप कैसी बात कर रहे हैं? हमेशा आपका आदेश बिना ना नुकूर के माना है I
साहब को तनिक गुस्सा आ गया, आक्रोशित होकर बोलें, अबे ! फोकट में माना है क्या, गाँव में कच्चा टापरा था, भेंस चराता था, आज तेरी महल जैसी कोठी है I
जी सर, सब आप ही की मेहरबानी है I आप बुरा क्यों मान रहे हैं, सर I पर वो सब तो फर्जीवाड़े में या बीमारी बताकर या झूठमूठ आग लगवाकर सुनसान बियाबान जंगलों में किया था I यह तो सड़कों पर आम जनता के सामने, खुलेआम करेंगे, तो “बंजारा” बना देंगे मीडिया वाले और पोलिटिशियंस I
देखो डरो मत, उनकी कोई कौम नहीं है I कोई जात नहीं है I कोई वोट बैंक नहीं I कोई तुष्टीकरण का मसला भी नहीं है I अपोजिशन का भी इंटरेस्ट जातिवाद पे अटक कर लटक चूका है I इनका कोई दमदार लीडर भी नहीं I उनकी आवाज उठाने वाले दो-चार स्टेटमेन्ट देंगे, थके-हारे बूढ़े एक-दो धरने दे देंगे, बिचारे दो-चार घण्टों का अनशन करेंगे I ज्ञापन-व्यापन देंगे I फोटो सेशन होगा I चुप हो जाएंगे I
साहब को उन पर अस्थायी गुस्सा आ जाता है, स्साले स्यापा भी करते हैं तो पत्रकारों को बुलाकर करते हैं I
सर, मुझे तो फिर भी डर लग रहा है I
एक काम करो I पिछला 75 वर्षों का इतिहास छान लो I कभी कुछ नहीं हुआ है I आजादी के बाद से करोड़ों-अरबों इसीतरह निपट चुके हैं I
सर, वो था न बहुगुणा I
अबे, एकाध सुन्दरलाल बहुगुणा से क्या फरक पड़ता है? बेचारा, वह भी दुर्गुणाओं के बीच कहाँ हाथ पैर मार पाया I हजार दो हजार पेड़ बचा भी लिया तो क्या I
दूसरा नाम नहीं मिलेगा, इतिहास में I दो-तीन शताब्दियों पहले बिश्नोई समाज की महिला अमृतादेवी के नेतृत्व में पौने चार सौ लोग आगे आए थे, सबके सिर काट दिए गए थे, तब से आज तक पेड़ काटने वालों, जंगल जलाने वालों, पेड़ों में बीमारी बताकर जंगल बेचने वालों का कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया I अरे, भाई बाल भी बांका नहीं कर पाता है, कोई I ज्यादा से ज्यादा कुछ हुआ तो वृक्षारोपण की फूलप्रूफ परम्परागत नौटंकी अपने पास है ही I
आपका भी जवाब नहीं है, सर I
तुम तो अपना काम शुरू करो I पूरे जिले भर के पेड़ साफ कर दो I आर्डर निकलवा दूंगा I बीमार थे, निजी थे, विकास में बाधा बन रहे थे I सुनो ! जैसे जंगल में करते थे, वैसे ही कटाई का बिल बनाना, ढुलाई का भी बिल पेश करके, वसूली करना I तीन-चार सौ ट्रक लकड़ी टिम्बरचन्द लकड़ी वाले के यहाँ मेरे साले के खाते में भी जमा करवा देना, तुम्हारी भाभी नाराज रहती है कि मेरे भाई का खयाल नहीं रखते हो I
बाकी हमेशा की तरह अपने हिसाब से एडजस्टमेंट कर लेना I हाँ, मैं तेरे काम से बहुत प्रसन्न हूँ, इस बार पांच परसेंट ज्यादा मिलेगा I अकारण डरा मत कर, अभी तो बीस फीसदी जंगल बाकी है I
खुश होते हुए, जी, बहुत अच्छा सर I
हाँ, एक काम और करेंगे, काटने से पहले ही चार-पांच गुना पौधें लगाने की अखबारी घोषणा हो जायेगी I उसका ठेका इस बार तेरे साले को दिलवा दूंगा I उसकी भी जिन्दगी सुधर जाएगी और तेरी लुगाई भी खुश हो जायेगी I
सर, वाकई, मालिक हो तो आप जैसा I
जय हिन्द सर I
Anand Swaroop Agnihotri, Jun-13-2024
Nice sattire..