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रिवाबा ने की बोलती बंदः अपने पति के पैर छूती हूं, मेरी मर्जी...आपको क्या मतलब..!

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रिवाबा ने की बोलती बंदः अपने पति के पैर छूती हूं, मेरी मर्जी...आपको क्या मतलब..!

स्पोर्ट्स/क्रिकेट/Delhi/New Delhi :

आईपीएल फाइनल ने रविंद्र जडेजा की पत्नी रिवाबा ने भरे स्टेडियम में पति के पैर छूकर पूरे भारत में नई बहस को जन्म दे दिया है।  

क्रिकेटर रवींद्र जडेजा (34) की पत्नी और भाजपा विधायक रिवाबा जडेजा (32) अपने पति को इस सीजन के आईपीएल का हीरो घोषित किए जाने के बाद मैदान पर पहुंचीं, और उनके पैर छूने के लिए झुकीं। जडेजा ने सीएसके टीम (2022) के कप्तान के रूप में अपनी पहली जीत अपनी पत्नी को समर्पित की थी। लेकिन, जाहिर है, रिवाबा के पैर छूते ही इस घटना का वीडियो वायरल हो गया था।
टीवी पर छिड़ी गर्मागर्म बहस
जब टीवी एंकरों (मुख्य रूप से महिलाओं) ने एक प्रशिक्षित मैकेनिकल इंजीनियर रिवाबा के अपने पति के पैर छूने पर सवाल उठाते हुए उग्र बहस शुरू कर दी, तो बड़े पैमाने पर हैरानी और विस्मय हुआ। सवाल उठे कि - क्या यह ‘संस्कारी’ था या मध्ययुगीन था? जवाब में जहां आलोचकों ने रिवाबा की खुद को गुलाम बनाने और पुराने जमाने के मूल्यों का समर्थन करने के लिए निंदा की, वहीं हजारों लोगों ने रिवाबा का समर्थन किया और उन्हें एक पत्नी और ‘भारतीय संस्कृति का प्रतीक’ बताया।
रिवाबा का एकदम सटीक जवाब
इस मामले में रिवाबा ने सधा हुआ जवाब देते हुए कहा कि यह बहुत गहरा व्यक्तिगत मामला है। मैं कोई आदर्श पत्नी नहीं हूं। कई लोगों के लिए, मैं भारतीय संस्कृति का प्रतीक हूं, लेकिन मैं इसी बात से खुष हूं कि दिवाली के दौरान अपने पति के पैर छूकर आषीर्वाद लेती हूं। अब मुझे प्रतिगामी कहो, मुझे डायनासोर कहो, मुझे कुछ भी कहो। मैं हाथ जोड़कर और शुभ समारोहों के दौरान लोगों से आशीर्वाद लेकर अपने बच्चों को परिवार के बड़ों के प्रति सम्मान दिखाने के लिए प्रोत्साहित करती हूं।
आलोचक अपना काम करें
उन्होंने कहा, ‘मैं अपनी मां को अपने पिता के लिए पड़वा आरती करते हुए और फिर परिवार के मुखिया के रूप में उनका आशीर्वाद लेने के लिए उनके पैर छूते हुए देखते हुए बड़ी हुई हूं। मेरे पिता मेरी मां का उतना ही सम्मान करते थे, जितना वह उनका सम्मान करती थीं। हालांकि उन्होंने उसके पैर नहीं छुए या उसके लिए आरती नहीं की। लेकिन यह भेदभाव नहीं है, यह परंपरा है। इसे किसने शुरू किया? क्यों? क्या यह आज के दिन और युग में प्रासंगिक है? क्षमा करें, लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं है। जहां तक मेरी बात है, इस विशेष पारिवारिक परंपरा का पालन करना या न करना एकतरफा मेरा निर्णय है। मैंने इसका पालन करना चुना हूं। अधिकांश परंपराओं की तरह जो दूसरों को अतार्किक, यहां तक कि बेतुका लग सकती है। मुझे किसी को स्पष्टीकरण नहीं देना। मुझे अपने कार्यों को सही ठहराने की आवश्यकता नहीं है। न ही मैं माफी शर्मिंदा महसूस करती हूं।’

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Jyoti Bala

By News Thikhana

Senior Sub Editor

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