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कौन हैं अनोखे नाम वाली फिल्म 'कैप्सूल गिल' के असली हीरो ,जिन्हे अक्षय कुमार भी सलूट करते हैं

मनोरंजन जगत

कौन हैं अनोखे नाम वाली फिल्म 'कैप्सूल गिल' के असली हीरो ,जिन्हे अक्षय कुमार भी सलूट करते हैं

मनोरंजन जगत//Maharashtra/ :

‘द हीरो ऑफ रानीगंज’ के नाम से मशहूर अमृतसर के इंजीनियर जसवंत सिंह गिल  की बायोपिक में बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार  उनका किरदार निभाते हुए नजर आएँगे।इसकी जानकारी अक्षय कुमार ने एक ट्वीट के जरिये दी थी।जसवंत सिंह गिल ने अपनी जान की परवाह किए बिना 6 घंटे में 65 लोगों की जिंदगी बचाई थी। सरदार जसवंत सिंह गिल को कैप्सूल गिल के नाम से भी पुकारा जाता था। इसलिए फिल्म का नाम ‘कैप्सूल गिल’ रखा गया है।

जसवंत सिंह गिल को उनकी बहादुरी के लिए 1991 में भारत सरकार की तरफ से प्रेसिंडेट रामास्वामी वेंकटरमन के हाथों सिविलियन गेलेन्ट्री अवार्ड 'सर्वोंत्तम जीवन रक्षक पदक' दिया गया। 29 नवंबर, 2009 को, उन्हें ISMAA द्वारा भारत का पहला 'लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड फॉर माइनिंग' दिया गया। कोल इंडिया ने उनके सम्मान में 'रेस्क्यू डे' मनाता है।फिल्म की शूटिंग पिछले साल शुरू हो चुकी है। जसवंत सिंह गिल ने अपनी जान की परवाह किए बिना 6 घंटे में 65 लोगों की जिंदगी बचाई थी। सरदार जसवंत सिंह गिल को कैप्सूल गिल के नाम से भी पुकारा जाता था। इसलिए फिल्म का नाम ‘कैप्सूल गिल’  रखा गया है। अक्षय कुमार की फिल्म को वासु भगनानी और जैकी भगनानी प्रोड्यूस कर रहे हैं। वहीं फिल्म का निर्देशन टीनू सुरेश देसाई कर रहे हैं।

यह थी घटना 
दरअसल, जसवंत सिंह गिल कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited) के इंजीनियर हुआ करते थे। आज से करीब 33 साल (13 नवंबर 1989) पहले उनके कार्यकाल के दौरान पश्चिम बंगाल के रानीगंज स्थित एक कोयला खदान (Coal Mines) में बाढ़ का पानी भर गया था। इस कारण वहाँ काम कर रहे 220 लोगों में से 6 की मौके पर ही मौत हो गई थी। जो लोग लिफ्ट के पास थे, उनको खींचकर बाहर निकाल लिया गया, लेकिन वहाँ 65 लोग फँसे रह गए थे। जब चीफ इंजीनियर जसवंत सिंह गिल को इस हादसे की खबर लगी, तो उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना तुरंत उस पानी से भरी खदान में जाने का फैसला किया। उन्होंने अपनी कुशलता दिखाते हुए टीम के साथियों की मदद से रेस्क्यू ऑपरेशन किया।

यूँ तरकीब लगा कर बचाईं ज़िंदगियाँ 
गिल ने सबसे पहले वहाँ मौजूद अफसरों की मदद से पानी को पम्प के जरिए बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन ये तरीका कारगर साबित नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने वहाँ कई बोर खोदे, जिससे खदान में फँसे मजदूरों को जिंदा रहने के लिए खाना-पीना पहुँचाया जा सके। उस दौरान उन्होंने एक 2.5 मीटर का लंबा स्टील का एक कैप्सूल बनाया और उसे एक बोर के जरिए खदान में उतारा। जसवंत राहत और बचाव की ट्रेनिंग ले चुके थे। इसलिए उन्होंने खदान में उतरने का फैसला किया।

लोगों की बचायी जान 
उस वक्त कई लोगों ने और सरकार ने उनकी इस बात का विरोध भी किया, लेकिन जसवंत ने अपने रेस्क्यू को जारी रखा। उनके इस कदम से खदान में से एक-एक करके लोगों को उस कैप्सूल के जरिए 6 घंटे में बाहर निकाल लिया गया। जब तक सभी 65 लोगों को खदान से बाहर नहीं निकाल लिया गया, तब तक जसवंत खुद बाहर नहीं आए। यह हादसा अब तक के कोयला खदानों में हुए सबसे बड़े हादसों में से एक था।

जसवंत सिंह गिल को मिला भारत का पहला ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड फॉर माइनिंग’
जसवंत सिंह को उनकी बहादुरी के लिए 2 साल बाद 1991 में भारत सरकार की तरफ से प्रेसिंडेट रामास्वामी वेंकटरमन के हाथों सिविलियन गेलेन्ट्री अवार्ड ‘ सर्वोंत्तम जीवन रक्षक पदक’ दिया गया। 29 नवंबर, 2009 को, उन्हें नई दिल्ली में ISMAA द्वारा भारत का पहला ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड फॉर माइनिंग’ दिया गया। साथ ही कोल इंडिया ने उनके सम्मान में 16 नवंबर को ‘रेस्क्यू डे’ डिक्लेयर किया। गिल के बनाए कैप्सूल मैथड को इसके बाद कई देशों ने इस्तेमाल किया। 2010 में चिली में इस कैप्सूल का इस्तेमाल हुआ था।

बता दें कि 22 नवंबर, 1939 को पंजाब के अमृतसर के सठियाला में जन्मे जसवंत सिंह गिल ने 1959 में खालसा कॉलेज से ग्रेजुएशन की थी। गिल ने झारखंड के धनबाद स्थित आईआईटी में खनन की बारी‍कियाँ सीखीं। एशिया के सबसे बड़े खनन इंस्‍टीट्यूट का नाम तब इंडियन स्‍कूल ऑफ माइंस (आईएसएम) हुआ करता था। जसवंत सिंह गिल का 26 नवंबर, 2019 को उनका निधन हो गया था।

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सौम्या बी श्रीवास्तव

By News Thikhana

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