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Atiq Ahmed : तांगेवाले के बेटे से गैंगस्टर बनने का अतीक अहमद के आपराधिक और फिर राजनैतिक सफर किसी फ़िल्मी स्टोरी से कम नहीं पढ़िए पूरी दास्तां..  

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Atiq Ahmed : तांगेवाले के बेटे से गैंगस्टर बनने का अतीक अहमद के आपराधिक और फिर राजनैतिक सफर किसी फ़िल्मी स्टोरी से कम नहीं पढ़िए पूरी दास्तां..  

क्राइम //Uttar Pradesh / :

Who is Atiq Ahmed : वर्ष 1962 में अतीक अहमद एक साधारण परिवार में हुआ था। उसके पिता जीविकोपार्जन के लिए तांगा चलाते थे।अतीक की ज़िंदगी की कहानी किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं था और इतना ही फ़िल्मी क्लाइमेक्स भी है। अतीक को गरीबी से नफरत थी और दसवीं में फेल होने के बाद उसे लग गया था कि इस तरह  शराफत से तो अच्छी ज़िंदगी नहीं गुज़र पायेगी ,तो उसने अपने दिमाग से शैतानी वारदातों को अंजाम देकर शानोशौकत भरी ज़िंदगी जीने की सोची। यद्यपि उसकी वारदातों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है,  हम आपके सामने उसके जीवन का खाका पेश कर रहे हैं। 

17 वर्ष की आयु में की थी पहली हत्या 
उसने पैसा कमाने के लिए सबसे पहले ट्रेनों से कोयला चुराकर उसे बेचना शुरू किया। आगे बढ़ा तो ठेकेदारों को धमकाने का काम किया। वह रेलवे स्क्रैप के लिए सरकारी निविदा हासिल करने के लिए उन्हें जान से मरने की धमकी देता। वर्ष 1979 में, महज 17 साल के आयु में अतीक पर इलाहाबाद, अब प्रयागराज में हत्या का आरोप लगाया गया था। 

गैंगस्टरों को करता था लीड 
अपराध जगत में कदम रखने के बाद तो वो जल्द ही वह राज्य में कई गैंगस्टरों का नेटवर्क चलाने लगा और उन्हें लीड भी करने लगा । उसका दबदबा धीरे-धीरे फूलपुर और कौशाम्बी सहित आसपास के इलाकों में फैल गया। 1989 में, जब उसके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी शौकत इलाही को पुलिस मुठभेड़ में मार दिया गया, तो अतीक अंडरवर्ल्ड का निर्विवाद बादशाह बन गया। 

10 सालों में ही पहुंच गया विधान सभा 
उसी वर्ष, अतीक ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से अपना पहला चुनाव लड़ा और जीता।  उसने 1989 से 2002 तक लगातार पांच बार इस सीट पर जीत हासिल की। पहले तीन बार निर्दलीय के रूप में, फिर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में और अंत में अपना दल के उम्मीदवार के रूप में। 

सपा से लोकसभा सीट जीती
अपना दल के उम्मीदवार के रूप में जीतने के एक साल बाद, अतीक समाजवादी पार्टी में वापस चला गया और 2004 में फूलपुर लोकसभा सीट जीती। उसे इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा क्षेत्र को खाली करना पड़ा, जिसने राजू पाल की हत्या की घटनाओं की एक श्रृंखला को जन्म दिया। 

राजू पाल की हत्या में गया जेल 
 24 फरवरी 2023 को उस घटना के एक मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या कर दी गई। अतीक को 2005 में राजू पाल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया और तीन साल बाद जमानत मिल गई। अतीक चाहे जेल में हो या बाहर, उसने उत्तर प्रदेश के अंडरवर्ल्ड पर अपना बोलबाला बनाए रखा और यह सुनिश्चित किया कि उसके लोगों की सुरक्षा हो।

सपा ने पार्टी से निकला 
2007 में, जब वह जेल में था, अतीक पर मदरसा के कुछ छात्राओं के सामूहिक बलात्कार में कथित रूप से शामिल अपने आदमियों को बचाने का आरोप लगाया गया था।  इससे आक्रोश फैल गया और समाजवादी पार्टी ने उसे निष्कासित कर दिया। यह उस समय की बात है, जब बसपा प्रमुख मायावती यूपी में सत्ता में लौटीं थी। पुलिस ने अतीक और उसके भाई पर दबाव बनाया। अतीक ने 2008 में आत्मसमर्पण किया और जेल चला गया। 

जब 2008 में भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के बाद संसद में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने वाली मनमोहन सिंह सरकार के संकट प्रबंधकों ने गंभीर आरोपों में जेल में बंद कुछ सांसदों की ओर रुख किया। अतीक उनमें से एक था, जो फर्लो  मतदान करने के लिए जेल से निकला और यूपीए सरकार को समर्थन कर फिर जेल चला गया। 

अतीक प्रतापगढ़ से अपना दल के उम्मीदवार के रूप में 2009 का संसदीय चुनाव भी हार गया। लेकिन, चुनावी हार का मतलब यह नहीं था कि उसका दबदबा कम हो गया था। वर्ष 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में, जब मायावती मुख्यमंत्री थीं, अतीक ने जेल से नामांकन किया।  उसने जमानत के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। 

सपा का वरदहस्त 
दस जजों ने उसकी जमानत अर्जी पर सुनवाई से इनकार कर दिया।  11वें जज ने उसके मामले को सुना और उसे जमानत दे दी।  हालांकि, वह राजू पाल की पत्नी पूजा पाल से चुनाव हार गया।  यूपी में समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने के एक साल बाद 2013 में अतीक को रिहा कर दिया गया। उसने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में श्रावस्ती से 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन फिर हार गया। 

नक़ल रोकने वाले कर्मचारियों पर हमला 
दिसंबर 2016 में अतीक और उसके सहयोगियों ने एक ईसाई अल्पसंख्यक संस्थान के कर्मचारियों पर हमला किया, जिन्होंने दो छात्रों को नकल करते पकड़े जाने के बाद परीक्षा देने से रोक दिया था। हिंसा कैमरे में कैद हो गई। जनवरी 2017 में, जब अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव से समाजवादी पार्टी का नियंत्रण ले लिया, तो अतीक का समाजवादी पार्टी रिश्ता ढीला पड़ गया। 

अपराधी से नेता बने अतीक से अखिलेश दूर रहना चाहते थे। अतीक को गिरफ्तार नहीं करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी यूपी पुलिस को जमकर फटकार लगाई।  इसके बाद अतीक की गिरफ्तारी हुई और तब से अतीक जेल में था। 

जेल से ही चलता था अतीक का साम्राज्य 
मार्च 2017 में, जब योगी आदित्यनाथ भाजपा सरकार में यूपी के मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने 'अपराधियों के साम्राज्य' को ध्वस्त करने का वादा किया। अतीक को उसके गढ़ इलाहाबाद से राज्य की देवरिया जेल ले जाया गया। देवरिया जेल में अतीक ने अपना साम्राज्य चलाया और एक व्यापारी मोहित जायसवाल का अपहरण कराकर जेल में बुलवाया। उससे संपत्ति के कुछ कागजों पर हस्ताक्षर करवाए गए और बेरहमी से पिटाई भी की। 

जेलर तक कांपते थे अतीक से 
इसके बाद अतीक को बरेली जेल ले जाया गया। लेकिन, जेल अधीक्षक डर गए और उसे वहां नहीं रखना चाहते थे। अप्रैल 2019 में कड़ी सख्ती के बीच योगी सरकार ने अतीक को प्रयागराज की नैनी जेल में शिफ्ट कर दिया।  इस समय तक, सुप्रीम कोर्ट ने देवरिया जेल मामले में अपना फैसला सुना दिया और अतीक को गुजरात के साबरमती जेल शिफ्ट करने का आदेश दिया। 

अतीक अहमद के खिलाफ जबरन वसूली, अपहरण और हत्या सहित 102 से अधिक मामले दर्ज थे, लेकिन राजू पाल की हत्या के एक गवाह उमेश पाल के अपहरण में उसे पहली बार सजा पिछले महीने मिली थी। विडंबना यह है कि उमेश पाल की हत्या के एक महीने बाद सजा सुनाई गई। अतीक अहमद का अपराध और राजनीति का सफर साथ साथ चलता रहा लेकिन वह अपनी राजनीति से ज्यादा अपराध के लिए जाना जाता था । उसने अपने अंडरवर्ल्ड साम्राज्य को बचाने और विस्तार करने के लिए चतुराई से राजनीति का इस्तेमाल किया। 

परिवार भी अपराध जगत में लिप्त 
चूंकि जेल में उसका रहना लंबा हो रहा था, अतीक ने अपनी पत्नी शाइस्ता परवीन को बसपा में शामिल करा दिया लेकिन जैसा कि किस्मत में था, उमेश पाल की हत्या के आरोप में नामित होने के कारण उसे आगामी मेयर चुनावों में मायावती ने उसे  टिकट से वंचित कर दिया । 

अतीक के बेटे भी उसके नक्शेकदम पर चल रहे हैं। अतीक का सबसे बड़ा बेटा उमर वर्तमान में 2018 में लखनऊ के एक व्यवसायी मोहित जायसवाल को जबरन वसूली, हमला करने और अपहरण करने के आरोप में जेल में है।  उमर ने पिछले साल अगस्त में सीबीआई के सामने सरेंडर किया था।  वह इस समय लखनऊ की जेल में है.
उसका दूसरा बेटा अली भी जेल में है। उसके खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया है। उसे हाल ही में उस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिली थी।  लेकिन, उसके खिलाफ फिरौती का एक और मामला दर्ज है।  वह प्रयागराज के नैनी जेल में शहर के एक प्रॉपर्टी डीलर से पांच करोड़ रुपये की रंगदारी मांगने के आरोप में बंद है। 
तीसरे बेटे असद को पिछले हफ्ते एक मुठभेड़ में मार दिया गया था और अतीक के दो नाबालिग बेटे किशोर आश्रय गृह में बंद हैं।  शनिवार की रात जब अस्पताल परिसर में तीन युवकों ने अतीक और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी, तो कइयों को इस घटना की भनक लग गई। 

अतीक ने खुद आशंका जताई थी कि उसे यूपी में मार दिया जाएगा लेकिन उसके बेटे असद के मारे जाने के 72 घंटे के भीतर ऐसा हो जाएगा, इसकी उसने उम्मीद नहीं की थी। कहा जाता है कि एक खूनी शुरुआत का हमेशा एक खूनी अंत होता है। 

क्लाइमेक्स 
24 फरवरी 2023 को उमेश पाल की हत्या से कानून व्यवस्था को नाकाम चुनौती देने के अतीक और उसके गुर्गों के दुस्साहस के बाद यूपी के सीएम योगी के माफिया को मिट्टी में मिलाने के संकल्प ने अतीक के जुर्म के साम्राज्य को तहस-नहस कर दिया गया। अतीक के बेटे असद सहित उसके 4 गुर्गों को पुलिस ने एनकाउंटर में ढेर कर दिया। अपराध से अर्जित की गई उसकी और उसके गुर्गों की 1400 करोड़ की सम्पत्ति जब्त की जा चुकी है।
15 अप्रैल 2023 शनिवार कि देर रात प्रयागराज में  अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की मीडिया के सामने तीन हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी। पुलिस सूत्रों के अनुसार तीनों का मानना है कि छोटे-छोटे अपराध में जेल जाने से उनका नाम नहीं हो रहा था इसलिए वे कुछ बड़ा करने की सोच रहे थे। तीनों को इसी बीच पता चला कि अतीक और अशरफ अहमद को पुलिस हिरासत में अस्पताल ले जाया जा रहा है। तीनों ने बड़ा नाम कमाने के मकसद से अतीक हत्या की साजिश रच डाली। शुरुआती जानकारी में उन्होंने कबूला है कि वे बड़ा माफिया डॉन बनने की इच्छा रखते हैं और इसी मकसद से उन्होंने अतीक और अशरफ को मार दिया। इसे अतीक के आतंक का अंत माना जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ एक नए आतंक की आहट भी। 

इसे विडंबना ही कहेंगे या फिर अतीक की किस्मत कि अतीक अहमद पर पहला आपराधिक मामला 1979 में प्रयागराज के खुल्दाबाद पुलिस स्टेशन में दर्ज हुआ था। तब से 44 साल के उसके आपराधिक सफर में उस पर 102 केस दर्ज हुए लेकिन किसी भी मामले में कोई सरकार उसे सजा नहीं दिलवा पाई।

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सौम्या बी श्रीवास्तव

By News Thikhana

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