तिरुपति मंदिर प्रसादम में बीफ टैलो, सूअर की चर्बी और मछली के तेल” इस्तेमाल किया गया..रिपोर्ट में खुलासा आज है विक्रम संवत् 2081 के अश्निन माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि रात 12:39 बजे तक यानी गुरुवार, 19 सितंबर, 2024 , आज है द्वितीया तिथि का श्राद्ध
पागलखाना - 18 पात्रों के साथ एकल प्रदर्शन द्वारा मंटो की मशहूर कहानी टोबा टेक सिंह और अन्य प्रचलित कहानियों का मंचन

साहित्य

पागलखाना - 18 पात्रों के साथ एकल प्रदर्शन द्वारा मंटो की मशहूर कहानी टोबा टेक सिंह और अन्य प्रचलित कहानियों का मंचन

साहित्य//Delhi/New Delhi :

पागलखाना : थिएटरप्रेमियों के लिए ये दास्तानगोई विधा को देखने समझने का दुर्लभ सुअवसर है। प्रसिद्ध लेखक मंटो की सबसे मशहूर कहानी टोबा टेक सिंह और अन्य प्रचलित कहानियों का मंचन शनिवार 21 सितंबर,  शाम 7 बजे, द्वारका सैक्टर 21  के स्टूडियो 2 में  (पैसिफिक मॉल की दूसरी मंज़िल पर) आयोजित किया जायेगा।

टोबा टेक सिंह और मंटो की अन्य कहानियों का कई भारतीय और पाकिस्तानी थिएटर निर्देशकों द्वारा नाटक के रूप में मंचन ज़रूर किया गया है, लेकिन उन कहानियों को कभी भी उनके असली यानि कहानी के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया। टोबा टेक सिंह एक दमदार कहानी है जोकि  एक कहानी के रूप में ही देखी सुनी जाए तो उसका असली रूप देखने को मिलता है न कि एक नाटक के रूप में जहाँ 18 किरदारों के लिए निर्देशक 18 अभिनेताओं को मंच पर उतारते हैं।

18 पात्रों को अकेले प्रस्तुत करेंगे कलाकार कमल प्रूथी

मंटो की सबसे लोकप्रिय कहानी टोबा टेक सिंह का एकल प्रदर्शन कभी भी एकल रूप में प्रदर्शित नहीं किया गया है, जहां 18 पात्रों को अकेले कमल प्रूथी द्वारा प्रस्तुत किया जाता है है। कमल एकमात्र ऐसे अभिनेता हैं जो पिछले 12 सालों से इस कहानी के 50 से ऊपर एकल मंचन हिंदुस्तान के 3 शहरों में कर चुके हैं।

कलाकार कमल प्रूथी उर्फ़ ' काबुलीवाला ' के बारे में

कमल पिछले 25 सालों से थिएटर कर रहे हैं। काबुलीवाला के नाम से मशहूर कमल ने अब तक हिंदी, उर्दू, पंजाबी, मराठी, कन्नड़, तमिल, जर्मन, फ्रेंच, बंगाली, मलयालम, तेलुगु और अंग्रेज़ी सहित 12 भाषाओं में मंच पर और कैमरे के लिए 400 से ऊपर अभिनय प्रदर्शन किए हैं। आजकल क्षेत्रीय भाषाओं के लिए कमल प्रोबो ऐप का चेहरा भी हैं और उनके सभी विज्ञापनों में नज़र आते हैं। कमल के ख़ास बात ये है कि वे पलक झपकते ही किरदारों और भाषाओँ को बदल देते हैं और आपको कई क्षेत्रीय भाषाओं में उनके डिजिटल विज्ञापन देखने को मिलते हैं।

"जहां दर्शक हैं, वहां मंच है" :

' जहां दर्शक हैं, वहां मंच है ' कमल मानते हैं । भारतीय भाषाओं के प्रेमी कमल केवल भारतीय भाषाएँ बोलना पसंद करते हैं और दृढ़ता से कहते हैं कि भारत की वास्तविक शक्ति और सामान्य ज्ञान को वापस लाने के लिए भारत में अंग्रेजी पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

 कौन हैं लेखक सआदत हसन मंटो

लेखक सआदत हसन मंटो का जन्म लुधियाना में हुआ था, मुंबई उनकी कर्मभूमि रही और फिर अनिच्छा से उन्हें 1947 के भारत-पाक बंटवारे के दौरान पाकिस्तान के शहर लाहौर जाना पड़ा जहां उनकी अल्पायु में मृत्यु भी हो गयी। मंटो पर 3-4 बॉलीवुड फिल्में बनने के बाद भी अभी भी बहुत से लोग हैं जो समीक्षकों द्वारा प्रशंसित और विवादास्पद भारत-पाकिस्तानी लेखक सादत हसन मंटो के बारे में नहीं जानते। 2018 में नंदिता दास की फिल्म मंटो, 2017 में पंकज कपूर टोबा टेक सिंह नामक फिल्म में मुख्य किरदार निभाते नज़र आये और 2002 में बानी थी काली शलवार।

मंटो को जानना क्यों ज़रूरी है?

अगर आप एक आम आदमी की भाषा में यह समझना चाहते हैं कि बंटवारे के दौरान क्या हुआ था तो मंटो ने यह सब अपनी कहानियों में बड़ी खूबसूरती से लिखा और पिरोया है।

* मंटो के बारे में दर्शकों से पूछे जायेंगे कुछ दिलचस्प सवाल *

ऐसी कौन सी बात है जो आपको मंटो का प्रशंसक बनाती है?

मंटो से आपका परिचय किसने कराया? और वह परिचय कब हुआ था?

अगर आप रास्ते चलते कभी मंटो साहब से टकरा जाएँ तो आप उनसे क्या कहेंगे?

अगर आप अपने बाज़ार में मंटो को देखें तो आप क्या करेंगे? आप उनसे क्या कहेंगे?

मंटो की आपकी सबसे पसंदीदा या यादगार कहानी का शीर्षक क्या है? और क्यों?

मंटो कौन थे? अपनी प्रतिक्रिया केवल एक शब्द या पंक्ति में लिखें।

मंटो आज भी प्रासंगिक क्यों है?

स्कूलों में बंटवारा कैसे पढ़ाया जाता है?

बंटवारे का आम जनता पर क्या असर पड़ा था?

आम जनता क्या महसूस कर रही थी, क्या कदम उठा रही थी?

क्या लोग अपनी मर्ज़ी से एक देश से दूसरे देश में जाना चाहते थे?

क्या वे किसी दूसरे शहर को दूसरे देश का नाम भी देना चाहते थे?

आम जनता के लिए चौंकाने और डराने वाली बातें क्या थी?

मंटो और भारत-पाकिस्तान का बंटवारा

बंटवारे का क्या मतलब है?  बंटवारे के बाद आम लोगों का क्या हुआ?

लोगों में बंटवारे का क्या दर्द था?

लोगों को पाकिस्तान से उजाड़ कर भारत में बसने में कितना समय लगा?

स्टूडियो 21, आयोजन स्थल (सभागार) के बारे में

आपने शॉपिंग मॉलों में सभागार और नाटक होते शायद ही कभी देखे होंगे। लेकिन प्रगतिशील और कलाप्रेमी मॉल मालिक आजकल अलग तरह से सोच रहे हैं और अपने मॉलों में कलात्मक आयोजनों के लिए जगह रख रहे हैं। और ऐसा ही एक समर्पित स्थान स्टूडियो 21 है, जोकि पैसिफिक मॉल द्वारका सैक्टर २१ की दूसरी मंजिल पर है।

अक्टूबर 2022 में खुले स्टूडियो 21 में 180 लोगों के बैठने की जगह है। अगर मॉल मालिक इस जगह को दुकानों के लिए दे दें तो वे आसानी से काफी पैसा कमा सकते हैं लेकिन स्टूडियो 21 को कला और रचनात्मकता के प्रति प्रेम को बढ़ावा देने के लिए और कला प्रेमियों के लिए ये जगह बेहद उचित दर पर किराए पर देने के लिए बनाई गई है। स्टूडियो 21 के मंच पर शुरुआती दिनों में सिर्फ कॉमेडी शो होते थे और अब यह जगह नाटकों, ओपन माइक कार्यक्रमों, संगीत कार्यक्रमों, नृत्य और संगीत प्रतियोगिताओं, फैशन शो, और तो और जन्मदिनों के आयोजनों के लिए भी खुली है।

दास्तानगोई क्या है? 

दास्तानगोई 13वीं सदी की उर्दू मौखिक कहानी कहने की कला है।  यह दो फ़ारसी शब्दों दास्तान और गोई से मिलकर बना है जिसका अर्थ है दास्तान सुनाना। जिसमे अभिनेता सफेद कपड़े पहनते हैं, प्रदर्शन के दौरान पीने के लिए पानी और बैठने के लिए दो गावतकिये (गोल तकिये/मसनद) और वज्रासन में सफ़ेद गद्दों पर ही बैठते हैं और कुछ उर्दू का उपयोग करके बैठकर ही कहानी सुनाते हैं और खुद को दास्तानगो कहते हैं!

 कहानी सुनाने में और कहानी के अभिनय में ज़मीन आसमान का अंतर

अपने एकल प्रदर्शन में पूरा मंच सँभालते और उपयोग करते हुए 18 किरदारों को एक के बाद एक ज़िंदा करते देखेंगे कमल को और पूरे मंच का उपयोग करते हुए, बैठकर, खड़े होकर और यहां तक कि लेटकर भी सभी भावों के साथ अभिनय करते हैं, न कि सिर्फ बैठकर कहानी सुनाते हैं । 

कला विधाओं को बढ़ावा देना पत्रकारों की ज़िम्मेदारी 

लुप्त होती कथावाचन की क्षेत्रीय कलाओं और कलाकारों का प्रचार करने की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी पत्रकारों पर  होती है और उन्होंने पिछले 20 सालों में कहानी कहने के लोक और क्षेत्रीय रूपों को बिल्कुल नज़रंदाज़ किया है और उनपर नहीं लिखा।  या वे दर्शक, जिन्होंने दास्तानगोई कला का नाम सुनकर ही इसकी प्रशंसा शुरू कर दी और इसे प्रस्तुत करने वाले कलाकार का नाम भी नहीं जानते थे।  नाच, सांग और रागनी के बारे में कितना पढ़ा, लिखा और सुना है? नौटंकी, बिदेसिया और कई अन्य मौजूदा कला रूपों के बारे में भी जो लुप्त होने के कगार पर खड़ी है।आजकल इन विधान के बारे में और अधिकलिखने की ज़रूरत है। 

अगर आपको पागलखाना के एकल प्रदर्शन के किसी विशिष्ट पहलू पर विस्तृत जानकारी चाहिए ,संपर्क/ कॉल करें।

(शिवाजी स्टेडियम से 16 मिनट की एयरपोर्ट मैट्रो और नई दिल्ली से 18 मिनट की मैट्रो)

टिकटों का मूल्य : मात्र 100 और 200 रुपए
टिकट पेटीएम 8861907362 और bookmyshow पर उपलब्ध 

अगर आप अपना मोबाइल नंबर साझा करते हैं तो आपको 21 तारीख़ को एक एसएमएस भेजकर याद दिला दिया जायेगा जिसमे शो से सम्बंधित सूचनाएं आपको प्रेषित की जा सकेगी |

 
 

You can share this post!

author

सौम्या बी श्रीवास्तव

By News Thikhana

Comments

  • Satyanarayan Vyas, Sep-18-2024

    क्या इस एकल नाट्य का मंचन हम इंदौर में कभी करवा सकते है?कृपया 9827503834 पर उत्तर दें

Leave Comments