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अब कबूतरों को कहें जा. जा.. जा.. क्योंकि पूर्वांचल में वही बन रहे हैं लंग्स फाइब्रोसिस का प्रमुख कारण..!

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अब कबूतरों को कहें जा. जा.. जा.. क्योंकि पूर्वांचल में वही बन रहे हैं लंग्स फाइब्रोसिस का प्रमुख कारण..!

स्वास्थ्य //Uttar Pradesh /Lucknow :

एक समय था जब लोग घरों की दीवारों पर कबूतरों के बैठने का इंतजार किया करते थे और उम्मीद करते थे कि शायद वो कोई संदेसा लाया गया होगा। कबूतर लंबी दूरी तय करते सही स्थान पर चिट्ठियों को पहुंचाया करते थे। बहुत लोग तो कबूतरों को पाला भी करते थे। लेकिन, जानकारी आ रही है कि भारत के पूर्वांचल क्षेत्र में कबूतर अब संदेसा लाने की बजाय 'लंग्स फाइब्रोसिस' नाम की बीमारियां  रहे हैं।

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने अपने शोध के आधार पर दावा किया है कि कबूतर और चिड़ियों की बीट से 'लंग्स फाइब्रोसिस'  बीमारी बहुत ही तेज गति से फैलती जा रही है। पूर्वांचल में बहुत से लोग इस बीमारी के दो स्वरूपों में से यानी 'हाइपर सेंसटिव नेमोटाइटिस'  से ग्रसित हैं। यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो इस बीमारी के मरीज बढ़ते ही जाएंगे।

उल्लेखनीय है कि दो वर्षों के दौरान कोरोना से पीड़ित रहे लोग अब इसके बाद के विभिन्न प्रभावों से पीड़ित होकर डॉक्टरों के पास जा रहे हैं। बहुत से लोगों में फेफड़ों के संक्रमण की परेशानी देखने को मिल रही है। पूर्वांचल के क्षेत्र के अस्पतालों में ज्यादातर मरीज फेफड़ों के संक्रमण से ग्रसित होकर आ रहे हैं। विशेषतौर पर उन्हें सीओपीडी, अस्थमा, ट्यूबर कोलोसिस और लंग्स फाइब्रोसिस जैसी परेशानियां हैं। इन मरीजों में सबसे ज्यादा लंग्स फाइब्रोसिस से पीड़ित देखने को मिल रहे हैं।

पूर्वांचल में लंग्स फाइब्रोसिस का सबसे बड़ा कारण 'हाइपर सेंसेटिव नेमोटाइसिस' है और इसका सबसे बड़ा कारण कबूतर की बीट है। गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों के शोध में यह निष्कर्ष में यह सामने आया है कि पूर्वांचल में इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण कबूतर, चिड़िया और मुर्गी की बीट के साथ खेती के दौरान उड़ने वाली डस्ट है। इन सभी कारणों में डॉक्टर कबूतर की बीट को सबसे बड़ा कारण मानते हैं। मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों का कहना है कि यदि मरीजों को इन कबूतरों और चिड़ियों से दूर कर दिया जाए तो बहुत हद तक इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है।

डॉक्टरों के मुताबिक भारत में दो तरह के लंग्स फाइब्रोसिस मरीज पाए जाते है, एक है आईपीएफ और दूसरा एचएसएन यानी 'हाइपर सेंसटिव नेमोटाइटिस' पहली बीमारी 'आईपीएफ' जिसमे मरीज का इलाज तो होता है। उन्हें एक समय के बाद बचाया नहीं जा सकता लेकिन दूसरी 'हाईपर सेंसटिव नेमोटाइटिस' जिसमें मरीज को बचा पाना संभव होता है। देशभर में सबसे ज्यादा मरीज आईपीएफ लंग्स फाइब्रोसिस के पाए जाते हैं। जबकि पूर्वांचल के क्षेत्र में ज्यादातर मरीज 'हाईपर सेंसटिव नेमोटाइटिस्ट' नामक बीमारी से ग्रसित है। जो कबूतर की बीट, चिड़ियों के बीट और खेतों की मिट्टी के धूल से होती है।

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