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घने जंगल में सीआरपीएफ को गुमराह करने के लिए नक्सली कर रहे ऐसी हरकतें

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घने जंगल में सीआरपीएफ को गुमराह करने के लिए नक्सली कर रहे ऐसी हरकतें

क्राइम //Chhattisgarh/Raipur :

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि तीन साल के भीतर नक्सलियों का पूर्ण रूप से सफाया हो जाएगा। इन सबके बीच नक्सलियों का कैडर बौखला उठा है। इसलिए वो किसी तरह से सुरक्षाबलों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं।

माओवादी चरमपंथ प्रभावित जिलों के घने जंगलों में सीआरपीएफ के नियमित ऑपरेशनों से नक्सली थर्रा उठे हैं। लगातार चल रहे अभियान में नक्सली मारे जा रहे हैं या वे खुद को सुरक्षा बलों के समक्ष सरेंडर कर रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि तीन साल के भीतर नक्सलियों का पूर्ण रूप से सफाया हो जाएगा। इससे बौखलाए नक्सली अब इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) विस्फोटक की मदद ले रहे हैं।
घने जंगल में सीआरपीएफ कमांडो को गुमराह करने के लिए नक्सलियों ने अब नई हरकतें करनी शुरू कर दी हैं। जवानों के दस्ते को एक लेन में चलने से रोकने का प्रयास करते हैं। आसपास के इलाके में विस्फोट या गोलीबारी कर सीआरपीएफ दस्ते को अपनी तय दिशा से हटाने की कोशिश करते हैं। वजह, जैसे ही सुरक्षा बलों का दस्ता, एक दो मीटर इधर-उधर होता है, वह नक्सलियों द्वारा दबाई गई प्रेशर आईईडी की चपेट में आ जाता है। खोजी कुत्ता आगे चलता है, मगर रास्ते में सुगंधित पदार्थ डालकर वे कुत्ते को गुमराह कर देते हैं। इसके बावजूद सीआरपीएफ ने नक्सलियों के गढ़ में नए कैंप स्थापित कर उन्हें खदेड़ दिया है।
लगातार चोट से बौखलाए नक्सली
सूत्रों के मुताबिक, सीआरपीएफ महानिदेशक अनीश दयाल सिंह ने पिछले दिनों कहा था कि देश में नक्सलवाद, अब ज्यादा समय तक नहीं टिकेगा। धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सलवाद पर आखिरी प्रहार करने के उद्देश्य से 31 नए फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस स्थापित किए गए हैं। इतना ही नहीं, डीजी अनीश दयाल सिंह, खुद ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस’ का दौरा कर रहे हैं। वे जवानों और अफसरों का उत्साह बढ़ा रहे हैं। हाल ही में उन्होंने छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों का दौरा किया था। सीआरपीएफ की लगातार चोट से नक्सली बौखला गए हैं। उन्होंने अब जवानों के दस्ते को आईईडी विस्फोट से नुकसान पहुंचाने की रणनीति बनाई है।
नक्सलियों ने कहां पर लगाई है आईईडी
जानकारी के अनुसार, घने जंगल में सीआरपीएफ कमांडो को गुमराह करने के मकसद से नक्सली, अब कई तरह के तरीके इस्तेमाल कर रहे हैं। जंगल में किसी भी ऑपरेशन पर निकलते समय, सीआरपीएफ द्वारा विशेष नियमों का पालन किया जाता है। इसे ‘एसओपी’ भी कहते हैं। जैसे सुरक्षा बल के दस्ते को एक तय लाइन पर चलना होता है। वजह, जंगल में यह मालूम नहीं होता कि नक्सलियों ने कहां पर आईईडी लगा रखी है। वहां पर पेड़-पौधे, घास, सूखे पत्ते और झाड़ियां, इतनी सघन होती हैं कि उनमें कई बार आईईडी का अंदाजा नहीं मिलता है। 
एसओपी का पालन जरूरी
एसओपी के मुताबिक, दस्ते के आगे एक जवान आईईडी डिटेक्टर लेकर चलता है। दूसरे नंबर पर जीपीएस मशीन वाला जवान रहता है। इनके साथ खोजी कुत्ता भी रहता है। तीसरे नंबर पर कंपनी कमांडर यानी सहायक कमांडेंट चलता है। उसके बाद जवान आगे बढ़ते हैं। यही वजह है कि सीआरपीएफ के अनेक जांबाज प्रेशर आईईडी विस्फोट में शहीद हो जाते हैं या उन्हें अपने शरीर के महत्वपूर्ण अंग खोने पड़ते हैं।
पेड़ की जड़ में आईईडी लगा देते हैं
नक्सलियों ने सुरक्षाबलों की एसओपी में सेंध लगाने के लिए कई तरह की हरकतें शुरू की हैं। जैसे, वे सीधे जमीन की बजाए, किसी पेड़ की जड़ में आईईडी लगा देते हैं। लोकसभा चुनाव में पहले चरण के मतदान के दिन बीजापुर में चुनाव ड्यूटी के दौरान हुए आईईडी ब्लास्ट में सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट मनु एचसी, (52 बैच डीएजीओ), ई 62 बटालियन, घायल हो गए थे। उनकी कंपनी बीजापुर के चिहिका पोलिंग बूथ बैरमगढ़, में आउटर कॉर्डन ड्यूटी पर थी। नक्सलियों ने पेड़ की जड़ में आईईडी लगा रखी थी।
विस्फोट का खतरा कई गुना ज्यादा बढ़ा
सूत्रों ने बताया, नक्सली, सुरक्षा बलों की दिशा बदलने का प्रयास करते हैं। अगर जंगल में हल्की सी दिशा बदलती है, तो आईईडी विस्फोट का खतरा कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। दिशा बदलते ही किसी भी जवान या अधिकारी का पांव प्रेशर आईईडी पर पड़ जाता है। तेज गर्मी में खोजी कुत्ते की सूंघने की शक्ति कम हो जाती है। दूसरा, नक्सलियों द्वारा रास्ते पर कोई सुगंधित पदार्थ डाल दिया जाता है। इससे खोजी कुत्ता, गुमराह हो सकता है। कुत्ते के पीछे जवानों का दस्ता भी रहता है। अगर कुत्ता गलत दिशा को फॉलो करता है, तो उस स्थिति में पीछे चलने वाले जवानों के आईईडी विस्फोट की चपेट में आने का खतरा बढ़ जाता है। 
बीजीएल से फायर करते हैं नक्सली
दस्ते का रास्ता बदलवाने के मकसद से नक्सली, बीजीएल से फायर करते हैं। दूसरी जगह पर कोई बड़ा विस्फोट करते हैं। इसके पीछे उनकी मंशा यह रहती है कि विस्फोट के चलते सुरक्षा बल अपना रास्ता बदलें। वे उस रास्ते की तरफ बढ़ें, जहां पर नक्सलियों ने आईईडी दबाई होती है। हालत यह होती है कि जंगल में चलते वक्त अगर किसी जवान को लघु शंका होती है, तो उसे वही लाइन फॉलो करनी पड़ती है। यानी, वहीं जवानों के बीच लघु शंका करनी होती है। अगर वह जरा सी भी लाइन से इधर उधर होता है, तो आईईडी विस्फोट की चपेट में आ सकता है। सीआरपीएफ के एक अधिकारी बताते हैं, इतने सब जोखिमों के बावजूद वह दस्ता आगे बढ़ता है। नक्सलियों के ठिकाने पर घुसकर उन्हें खत्म करता है।
वीरता की श्रेणी में शामिल करने की मांग
बहादुरी को लेकर बल में कई तरह की पॉलिसी हैं। उनमें आईईडी विस्फोट में मारे जाने या शरीर के अंग खोने पर कोई मान्यता नहीं दी जाती। उसे बहादुरी की श्रेणी में नहीं गिना जाता। इससे पहले भी बल में कई ऐसे उदाहरण देखने को मिले हैं, जिनमें किसी अधिकारी या जवान को अपने शरीर के अंग खोने पड़े हैं, मगर उसे वीरता की श्रेणी में नहीं माना गया। सहायक कमांडेंट विभोर का उदाहरण सबके सामने है। उन्होंने आईईडी विस्फोट में दोनों टांगें खो दीं। इसके बावजूद उन्हें वीरता का सम्मान देने में कई वर्ष लगा दिए। सहायक कमांडेंट वीर भाले राव, आईईडी विस्फोट में शहीद हुए थे, उन्हें कोई सम्मान नहीं मिला। ऐसे में जो कोई अधिकारी या जवान जब आईईडी विस्फोट की चपेट में आता है, तो वह अपने दस्ते के बाकी जवानों को बचा लेता है। भले ही खुद शहीद हो जाता है, लेकिन दस्ता सावधान होकर आगे के लिए दूसरी रणनीति तय करता है। यही कारण है कि बल के अधिकारियों ने ऐसे मामलों को वीरता की श्रेणी में शामिल करने की मांग की है।

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author

Jyoti Bala

By News Thikhana

Senior Sub Editor

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