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Mukhtar Ansari : जेल में मुख्तार का जलवा.. मछली खाने को खुदवाया तालाब, पत्नी के साथ रहा, चलाया माफियाराज

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Mukhtar Ansari : जेल में मुख्तार का जलवा.. मछली खाने को खुदवाया तालाब, पत्नी के साथ रहा, चलाया माफियाराज

क्राइम //Uttar Pradesh /Lucknow :

साल था 2005। यूपी के पूर्वांचल का जिला मऊ दंगे की आग में झुलस रहा था। इसी बीच मऊ की सड़कों पर खुली जीप में हथियार लहराते और मूछों पर ताव देते एक माफिया नमूदार हुआ। न प्रशासन का खौफ, न कानून की चिंता... यूं लगा वह खुद ‘सरकार’ है। नाम था, मुख्तार अंसारी।

पिछले महीने इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक टिप्पणी कहती है, ‘मुख्तार अंसारी गिरोह देश का सबसे खूंखार आपराधिक गिरोह है।’ पिछले 18 साल से सलाखों के पीछे बंद मुख्तार की सत्ता की सरपरस्ती में अपराध की ‘मुख्तारी’ इतनी मजबूत हुई कि आठ राज्यों में उसके अपने अपराध के साम्राज्य का विस्तार कर डाला। 2017 के विधानसभा चुनाव से ही भाजपा के निशाने पर मुख्तार का रसूख था। 11 मार्च के बाद यूपी में सरकार बदल गई। जेलों की रंगीनियां तो कम हुई हैं लेकिन एक महीने पहले हाईकोर्ट की टिप्पणी का कारण क्या था, इसके पीछे लंबी कहानी है।
मुख्तार पर हत्या का पहला केस
गाजीपुर के मोहम्मदाबाद में एक राजनीतिक परिवार में जन्मे मुख्तार अंसारी पर हत्या का पहला मुकदमा 1988 में मंडी परिषद में ठेकेदारी को लेकर दर्ज हुआ। इसके बाद मुख्तार के अपराधों की फेहरिस्त और उसके दबदबे का सिलसिला दोनों आगे बढ़ने लगे। 90 के दशक में मुख्तार को जेल जाना पड़ा था और उसका नया ठिकाना बनीं गाजीपुर जेल। यहां की सलाखों के पीछे जो रसूख मुख्तार ने जीया है उसके आगे अतीक का जलवा भी फीका ही रहा है। गाजीपुर जेल में 90 के दौर में तैनात रहे एक अधिकारी बताते हैं कि उस समय मोबाइल फोन का चलन शुरू नहीं हुआ था। बात करने का जरिया लैंडलाइन फोन हुआ करता था। मुख्तार के गाजीपुर जेल पहुंचने के बाद वहां के फोन के बिल भी मुख्तार के अपराध की तरह बढ़ने लगा। बाद में पता चला कि जेल का यह फोन मुख्तार के निजी संपर्क के जरिए में बदल गया था। इस टेलीफोन से वह अपना अपराध का साम्राज्य चला रहा था और उसे रोकने का दम किसी में नहीं था।
कृष्णानंद राय की हत्या
1996 में मऊ सदर सीट से पहली बार विधायक बना मुख्तार अंसारी जेल से बाहर आता-जाता रहा। 25 अक्टूबर, 2005 को वह अपनी जमानत रद्द कराकर जेल चला गया। इसके ठीक महीने बाद गाजीपुर से भाजपा विधायक और उसके प्रतिद्वंद्वी कृष्णानंद राय को गोलियों से भून दिया गया। सौ राउंड से अधिक गोलियां चली थी। घटना के कुछ दिनों बाद मुख्तार अंसारी का एक आडियो वॉयरल हुआ। इसमें वह कृष्णानंद राय की हत्या और उनकी चुटिया काटे जाने के बारे में बता रहा था। मामले की जांच सीबीआई को गई लेकिन वह मुख्तार और बाकी आरोपितों को कोर्ट में दोषी नहीं साबित कर पाई।
राजभवन के सामने जेल अधीक्षक की हत्या
2005 से जेल मुख्तार का ‘घर’ हो गया। इसलिए, उसने अपने लिए वहां भरपूर इंतजाम करवाया। गाजीपुर जेल में मुख्तार ने अपनी पसंदीदा मछली खाने के लिए जेल के अंदर ही तालाब खुदवा दिया। उसके बैडमिंटन खेलने के लिए बाकायदा कोर्ट बनवाया गया, जहां वह अफसरों के साथ बैडमिंटन खेलता था। मुख्तार की जिससे मर्जी होती थी, वही उससे जेल में मिलता था। हर सुख-सुविधा का साधन मुहैया होता था। उससे मुलाकात के लिए आने वाले लोगों की जेल में कहीं चेकिंग तक नहीं होती थी। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि जेल में मुख्तार की मर्जी के खिलाफ जो भी चला या तो उसे जान से हाथ धोना पड़ा या फिर घुटनों के बल आना पड़ा। लखनऊ जेल में तैनात रहे जेल अधीक्षक को राजभवन के सामने गोलियों से भून दिया गया था। इस हत्याकांड में मुख्तार और उसके गुर्गों का नाम सामने आया था। आरोप है कि उनकी सख्ती से मुख्तार नाराज था। हालांकि इस मामले में भी पुलिस कुछ खास साबित नहीं कर पाई। जेल अधीक्षक और जेल अधिकारियों को धमकाने के कई मुकदमे दर्ज हुए।
आठ राज्यों में फैलाया नेटवर्क
इन सबसे बेफिक्र मुख्तार अपने साम्राज्य का विस्तार करता रहा। पुलिसिया जांच के अनुसार मुख्तार अंसारी का गैंग आठ राज्यों में फैला है। फिर चाहे वह मुंबई हो या गुजरात या फिर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, दिल्ली और मध्य प्रदेश। गुजरात में मुख्तार ने कुख्यात एजाज लकड़ावाला और फरजू रहमान के जरिए सिंडिकेट तैयार किया। यहां दहशत के बल पर उसने अपने करीबियों के जरिए कोयला सप्लाई पर कब्जा किया। महाराष्ट्र में खासतौर से मुंबई में तेल के प्राइवेट रिजर्वॉयर में अपने करीबी शूटर मुन्ना बजरंगी के बल पर अपना एकाधिकार बनाया। उस दौरान मुन्ना बजरंगी मुंबई में मनोज जायसवाल के नाम से यह धंधा संभालता था।
करीबी राॅकी की हत्या का बदला
1994 से वर्ष 2016 तक पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में आतंक का पर्याय बने पंजाब के गैंगस्टर जसविंदर सिंह राॅकी से माफिया मुख्तार अंसारी की नजदीकियां जग जाहिर थीं। रॉकी की मदद से मुख्तार ने पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के गैंग्स में अपनी पकड़ मजबूत की। वाराणसी के नंद किशोर रूंगटा अपहरण व हत्याकांड में मुख्तार के साथ रॉकी सह अभियुक्त था। पुलिस सूत्रों के मुताबिक जब तक रॉकी जिंदा रहा तब तक पंजाब के शूटर्स का यूपी में और यूपी के शूटर्स का पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में जमकर इस्तेमाल हुआ। 2016 में जब रॉकी को हिमाचल प्रदेश के परवाणु में गोलियों से भून दिया गया तो उसकी हत्या कराने में पांच संदिग्धों के नाम सामने आए। ये सभी एक-एक करके मौत का शिकार हुए लेकिन किसी की भी मौत नैचुरल नहीं थी। इन पांचों की मौत के पीछे चर्चाओं में मुख्तार अंसारी गैंग का नाम आया। हालांकि ये साबित नहीं हो पाया।
मुख्तार के परिवार से अखिलेश के रिश्ते
मुख्तार अपराध के साथ ही सियासत में भी अपने पांव जमाता गया। जेल से उम्मीदवारी कर और चिट्ठियां जारी कर मऊ सीट से वह विधानसभा पहुंचता रहा। मुख्तार की सियासी पहुंच का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कभी वह बसपा तो कभी सपा में अपने और अपने परिवार का सियासी भविष्य सुरक्षित करते हुए गाजीपुर, मऊ, बनारस जैसे जिलों का राजनीति का रंग तय करता रहा। 2009 में भाजपा के गढ़ माने जाने वाजे बनारस से भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी मुख्तार से हारते-हारते बचे और महज 18 हजार वोटों से जीत दर्ज कर पाए। मुख्तार के परिवार की पार्टी कौमी एकता दल के सपा से गठबंधन को लेकर अखिलेश और शिवपाल के बीच ‘जंग’ छिड़ गई थी। अखिलेश ने यह कहकर गठबंधन तोड़ दिया कि उनकी पार्टी में माफियाओं के लिए जगह नहीं है। इसके बाद अखिलेश-शिवपाल के रास्ते अलग हो गए थे और मुख्तार परिवार ने बसपा का दामन थाम लिया। हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले मुख्तार के भतीजे मन्नू अंसारी को अखिलेश ने खुद पार्टी में शामिल कराया और विधानसभा का टिकट दिया। वहीं, मुख्तार के बेटे अब्बास को मऊ सदर सीट से सपा के सहयोगी दल सुभासपा ने अपना उम्मीदवार बनाया।
पंजाब जेल से आने को नहीं था तैयार
जेल से समानांतर सत्ता चला रहे मुख्तार को सलाखों के पीछे पहली बार डर तब लगा जब 10 जुलाई 2018 को उसके करीबी माफिया मुन्ना बजरंगी की बागपत जेल में हत्या हो गई। इससे दहले मुख्तार ने खुद को यूपी से बाहर निकालने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। उसे कामयाबी तब मिली जब पंजाब पुलिस वहां एक दर्ज मुकदमे के सिलसिले में यूपी से ले गई। उसके बाद वह पंजाब की जेल में ही जम गया। यूपी की योगी सरकार और पंजाब की तत्कालीन कांग्रेस सरकार में मुख्तार को रखने और लाने को लेकर ठन गई। यूपी पुलिस ने 26 बार प्रोडक्शन वारंट लगाया लेकिन मुख्तार को वापस नहीं ला सकी। आखिरकार, यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा।
सवा दो साल बाद वापस लाई यूपी सरकार
दो साल तीन महीने की अथक मेहनत के बाद यूपी पुलिस मुख्तार की घर वापसी करा पाई। पंजाब की जेल मुख्तार के लिए कैसे ऐशगाह थी, इसका खुलासा कुछ महीने पहले पंजाब के ही जेल मंत्री हरजोत बैंस ने वहां की विधानसभा में किया। बैंस का कहना है कि मुख्तार को फर्जी मुकदमा दर्ज करके पंजाब जेल में रखा गया। उसने इस दौरान जमानत कराने की भी कोशिश नहीं की। जेल मंत्री ने यह भी दावा किया कि 25 बंदियों वाली बैरिक में मुख्तार अकेले या फिर अपनी पत्नी के साथ रहता था।
मुख्तार का जेल में जलवा होने लगा कम
छह अप्रैल, 2021 से मुख्तार अंसारी बांदा जेल में बंद है। मुख्तार के बांदा जेल लौटने के एक माह आठ दिन बाद ही चित्रकूट जेल में बंद मुख्तार के एक और करीबी मेराज को जेल के अंदर गोलियों से भून दिया गया। उसे गोली मारने वाले अंशू दीक्षित ने जेल में बंद एक और कैदी मुकीम काला को भी मारा था। बाद में अंशू पुलिस मुठभेड़ में खुद भी मारा गया। फिलहाल, मुख्तार का अब जेल में ऐश का तिलिस्म काफी हद तक टूट चुका है। उस पर 24 घंटे सीसीटीवी कैमरों से निगरानी रखी जाती है। मनमाफिक मुलाकातों, मनचाहा खाना और मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर रोक-सी लग गई है।
नरमी बरतने वाले अफसरों पर गाज
जून 2022 में एक डिप्टी जेलर वीरेश्वर प्रताप सिंह ने जेल के अंदर मुख्तार पर नरमी बरतने और उसे विशेष सुविधाएं देने की कोशिश पर निलंबित किया जा चुका है। हाल में मुख्तार के विधायक बेटे अब्बास अंसारी को चित्रकूट जेल में विशेष सुविधा देने पर आठ जेल अधिकारी व कर्मी निलंबित हुए हैं। उनमें से चार को जेल भी भेजा गया। अब्बास की पत्नी निखत करीब 60 दिनों तक उससे जेल में मिलने आती रही। वह अब्बास के साथ ही जेल अधिकारियों के कमरे में रहती। डीएम-एसपी की छापेमारी में इस खेल का खुलासा हुआ। इस मामले में अब्बास की पत्नी भी जेल भेज दी गई है।
मुख्तार गैंग की 573 करोड़ की संपत्ति जब्त
करीब चार दशक तक कानून के शिकंजे से दूरे मुख्तार की सजा का पहल सबब भी जेल ही बनी। 23 अप्रैल 2003 की सुबह लखनऊ जिला कारागार के जेलर एसके अवस्थी को मुख्तार ने जान से मारने की धमकी दी थी। वर्ष 2020 में एमपी-एमएलए कोर्ट ने इस मामले में मुख्तार को बरी कर दिया था। लेकिन अभियोजन विभाग की पैरवी के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने निचली अदालत का फैसला पलट दिया और उसे सात साल की सजा सुनाई है। पिछले छह सालों में मुख्तार गैंग की 573 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति जब्त की गई है। वहीं, 200 करोड़ रुपये से अधिक का अवैध कारोबार ध्वस्त किया गया है। खतरे में मुख्तार की सियासत भी है। इस बार उसने मऊ की अपनी सियासी विरासत बेटे अब्बास को सौंपी थी, विधायक बनने के बाद वह भी जेल में है।

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author

Jyoti Bala

By News Thikhana

Senior Sub Editor

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