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इजराइली तोप के गोले खत्म हो रहे: इतना मुश्किल क्यों है इसका प्रोडक्शन

सेना

इजराइली तोप के गोले खत्म हो रहे: इतना मुश्किल क्यों है इसका प्रोडक्शन

सेना///Tel Aviv :

जनवरी 2023 यानी 10 महीने पुरानी बात है। अमेरिका ने इजराइल स्थित अपने हथियारों के खजाने से 155 एमएम के करीब 3 लाख तोप के गोले यूक्रेन भेजने का फैसला किया, जिससे इजराइल में रखा स्टॉक खाली हो गया।

खतरे को भांपते हुए इजराइल ने इसी साल अगस्त में अल्बिट सिस्टम नाम की कंपनी को 155एमएम के 10 लाख गोले का ऑर्डर दिया था। हालांकि, इन सभी ऑर्डर की सप्लाई 2024 से पहले होना मुश्किल है। जंग शुरू होने बाद इजराइल के पास गोलों की कमी हो गई। सभी नाटो देश मिलकर भी उतना गोला नहीं तैयार कर पा रहे हैं, जितने की यूक्रेन और इजराइल को जरूरत है। अमेरिका जैसा सुपरपावर भी हर महीने महज 14 हजार तोप के गोले बना पाता है, जबकि हर महीने 10 हजार गोलों की जरूरत तो सिर्फ यूक्रेन को है। आखिर तोप के गोले बनाने में ऐसा क्या है कि कुछ दिनों की जंग में ही ये कम पड़ने लगते हैं, अधिकांश दुनिया में इस्तेमाल होने वाले 155एमएम तोप के गोलों की खासियत क्या है !
तोपों का ज्यादा इस्तेमाल, इसलिए मांग ज्यादा
यूक्रेन-रूस और इजराइल-हमास युद्ध में सेना की बजाय तोपों का उपयोग ज्यादा किया जा रहा है। गाजा शहरी और घनी आबादी वाला इलाका है। अगर इजराइल यहां सीधे आर्मी को डिप्लॉय करता है तो हमास से युद्ध में आम लोगों की ज्यादा मौतें होंगी। गाजा में आम लोगों की मौत पर वैसे भी इजराइल पर सीजफायर का अंतरराष्ट्रीय दबाव है। यूएन में उसके खिलाफ प्रस्ताव पारित हो चुका है। ऐसे में आधुनिक ट्रैकिंग सिस्टम से इजराइल गाजा में हमास आतंकियों की लोकेशन ट्रैक करता है और तोपों से टारगेट पर निशाना लगाता है। ऐसे में जनहानि कम हो रही है। ऐसा ही यूक्रेन में भी हो रहा है। वहां भी सेना को आगे नहीं करते हुए तोपों का उपयोग किया जा रहा है, जिसके चलते ज्यादा से ज्यादा तोप के गोले छोड़े जा रहे हैं। 155 एमएम के गोले की सप्लाई उतनी नहीं हो रही है, जितनी डिमांड है। यही कारण है कि इनकी कमी होती सजा रही है।
अमेरिका के पास भी सिर्फ दो फैक्ट्रियां
155 एमएम तोप के गोले बनाना आसान काम नहीं है। इसे दो हिस्सों में बनाना होता है। पहला- स्टील से गोलों के खोल बनाना। इसके लिए मोटे निवेश वाली बड़ी फैक्ट्रियों की जरूरत होती है। दूसरा- तैयार खोल में विस्फोटक डालना। गोला का खोल बनाना एक पेचीदा काम है। इसमें समय भी ज्यादा लगता है। गोलों के खोल बनाने का प्रोसेस आम पाइप बनाने जैसा नहीं है। इसे बनाने के लिए सबसे पहले स्टील को काटा जाता है। फिर उन्हें बेहद गर्म तापमान पर मोल्ड करके उनमें ड्रिल करके खोल बनाए जाते हैं। गोले फायर करते समय वहीं विस्फोट न हो जाए और खोल न फटे, इसलिए इस प्रोसेस अपनाना जरूरी है। 155 एमएम तोप के गोले बनाना कितना पेचीदा काम है कि इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका जैसी सुपरपॉवर कंट्री में सिर्फ 2 फैक्ट्रियों में गोलों के लिए स्टील के खोल बनाए जाते हैं।
बने हुए गोलों का क्या होगा 
फिलहाल अमेरिका में 155 एमएम गोलों के स्टील खोल पेन्सिलवेनिया में सेना की दो फैक्ट्रियों में बनाए जाते हैं। पहली फैक्ट्री का नाम स्क्रैंटन आर्मी एम्युनिशन प्लांट है। दूसरी फैक्ट्री विलक्स बैरी में है। दोनों ही प्लांट्स को जनरल डायनेमिक्स यानी जीडी कंपनी ऑपरेट करती है। डिफेंस एक्सपर्ट्स का कहना है कि गोले बनाने की क्षमता बढ़ाने के लिए कंपनियों को मोटा निवेश करना होगा। इतना ही नहीं ज्यादा लोगों की भर्तियां भी करनी होंगी। ऐसे में पैसा लगाने वाली कंपनियां जानना चाहती हैं कि अभी रूस-यूक्रेन युद्ध और हमास इजराइल युद्ध चल रहा है, इसलिए जबरदस्त सप्लाई हो जाएगी, लेकिन जब ये युद्ध खत्म हो जाएंगे तो इतनी मात्रा में बने हुए गोलों का क्या होगा।
फ्रांस ने बनाया, लेकिन अमेरिका के अपनाने के बाद दुनिया ने इसे स्टैंडर्ड माना
वर्ल्ड वॉर-1 में फ्रांस ने सबसे पहले 155एमएम राउंड तोप का गोला बनाया था। इसके शुरुआती संस्करण में गैस के गोले भी थे। धीरे-धीरे फ्रांस के मित्र राष्ट्रों ने वर्ल्ड वार-1 में 155 एमएम को अपना लिया। इसके बाद इसे अमेरिकी सेना ने अपना और इसे स्टैंडर्ड ही बना लिया। जब वर्ल्ड वॉर-2 हुआ तो 155 एमएम डायमीटर में अमेरिका ने एम1 तोप का गोला उतारा। जब वर्ल्ड वॉर-2 खत्म हुआ तो नाटो देशों ने 155 एमएम स्टैंडर्ड मान लिया और तब से लेकर आज तक ये उन देशों में भी स्टैंडर्ड बन गया है, जो नाटो के मेंबर नहीं हैं।
रूस और यूक्रेन रोज फायर कर रहे 26,000 हजार गोले
यूक्रेन और रूस के युद्ध में भी रोज 155 एमएम वाले गोलों का उपयोग हो रहा है। यूरोएशियन टाइम्स के अनुसार यूक्रेन के सैन्य खुफिया विभाग के उप प्रमुख वादिम स्किबिट्स्की ने पिछले दिनों बताया था कि रूस के खिलाफ यूक्रेनी सेनाएं रोजाना 5,000 से 6,000 गोले फायर कर रही है। वहीं, रूस रोज लगभग 20,000 राउंड फायरिंग कर रहा है। इस तरह से रूस-यूक्रेन युद्ध में दोनों ओर से लगभग 26 हजार तोप के गोले फायर किए जा रहे हैं।
बढ़ रही गोलों की खपत
इजराइल में भी हमास के साथ युद्ध के चलते 155 एमएम गोलों की खपत बढ़ गई है। इसकी बेहद कमी हो इससे पहले ही उसने अमेरिका को 510 करोड़ रुपए की एक डील के तहत हजारों 155 एमएम तोप के गोलों का ऑर्डर दिया है। अमेरिका ने कहा है कि वह यूक्रेन और इजराइल दोनों को पर्याप्त सप्लाई करेगा। तोप के गोलों और हथियारों में कोई कमी नहीं आएगी। उधर, यूक्रेन की सांसद येहोर चेर्निएव ने कहा है कि यूक्रेन आगामी कुछ महीनों में एक बड़ा जवाबी हमला करने की तैयारी कर रहा है, इसलिए आने वाले समय में उसे रोज 7,000 से 9,000 155 मिमी के गोले दागने की जरूरत होगी।
रूस को नॉर्थ कोरिया कर रहा सप्लाई
एक रिपोर्ट के अनुसार रूस के पास भी 155 एमएम वाले तोप के गोले खत्म हो गए हैं। वह चोरी छिपे नार्थ कोरिया से तोप के गोले ले रहा है। हालांकि नार्थ कोरिया ने वाइट हाउस के इस आरोप से इनकार किया है। जानकार मानते हैं ऐसा इसलिए है क्योंकि नॉर्थ कोरिया के पास जो भी हथियार हैं, वह रूस की तकनीकी मदद से तैयार किए गए हैं। इस कारण से रूस को नार्थ कोरिया के उपयोग करने में कोई दिक्क्त नहीं है। नॉर्थ कोरिया का प्रतिद्वंदी साउथ कोरिया अमेरिका को तोप के गोले सप्लाई कर रहा है, जिसे वो यूक्रेन और इजराइल को भेज रहा है।
भारत की बोफोर्स ओर धनुष में भी 155 एमएम गोलों का ही उपयोग

भारत में इस्तेमाल होने वाली बोफोर्स तोप में भी 155 एमएम का गोला ही लगता है। इसके बाद भारत में निर्मित धनुष में भी यही गोला लगता है। इसे बोफोर्स की तर्ज पर जबलपुर गन कैरिज फैक्ट्री में डिजाइन और डवलप किया है। यह भारत में बनने वाली लंबी रेंज की पहली तोप है। धनुष के बैरल का वजन 2692 किलो और लंबाई 8 मीटर है। इसकी मारक क्षमता 42-45 किलोमीटर तक है। लगातार दो घंटे तक फायर करने में कैपेबल है और यह प्रति मिनट दो फायर करती है। इसमें 46.5 किलो के 155 एमएम डायमीटर वाले गोले का उपयोग किया जाता है।

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Jyoti Bala

By News Thikhana

Senior Sub Editor

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