धर्म//Rajasthan/Jaipur :
ज्योतिषियों का कहना है कि इस बार त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर शाम 4:33 बजे से 23 अक्टूबर शाम 6:04 बजे तक रहेगी। एक मत है कि धन त्रयोदशी उस दिन मनाई जानी चाहिए जिस दिन प्रदोष काल में त्रयोदशी हो। साथ ही रात्रि के निशीथ काल में भी त्रयोदशी हो। प्रदोष काल और निशीथ काल में त्रयोदशी 22 अक्टूबर को रहेगी, ऐसे में 22 को धनतेरस का दीप दान और खरीदारी करना श्रेष्ठ रहेगा जबकि 23 अक्टूबर को पूरे दिन त्रयोदशी होने से धन्वन्तरि पूजन उस दिन किया जाना चाहिए...
दीपोत्सव पर बाजार सजकर तैयार हैं। धनतेरस पर्व दो दिन होने से बाजार से लेकर घरों तक उत्साह है। इस बार भारत में दीपावली महापर्व के पर्वों की तिथियों को लेकर बहुत असमंजस की स्थिति है। ज्योतिषियों का कहना है कि इस बार त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर शाम 4:33 बजे से 23 अक्टूबर शाम 6:04 बजे तक रहेगी। एक मत है कि धन त्रयोदशी उस दिन मनाई जानी चाहिए जिस दिन प्रदोष काल में त्रयोदशी हो। साथ ही रात्रि के निशीथ काल में भी त्रयोदशी हो। प्रदोष काल और निशीथ काल में त्रयोदशी 22 अक्टूबर को रहेगी, ऐसे में 22 को धनतेरस का दीप दान और खरीदारी करना श्रेष्ठ रहेगा जबकि 23 अक्टूबर को पूरे दिन त्रयोदशी होने से धन्वन्तरि पूजन उस दिन किया जाना चाहिए।
आमतौर पर लोग धनतेरस को पैसों से जोड़कर देखते हैं लेकिन ये आरोग्य नाम के धन का पर्व है। पूरे साल अच्छी सेहत के लिए इस दिन आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि की पूजा होती है। विष्णु पुराण में निरोगी काया को ही सबसे बड़ा धन माना गया है। सेहत ही ठीक न हो तो पैसों का सुख महसूस नहीं होता इसलिए धन्वंतरि पूजा की परंपरा शुरू हुई।
पौराणिक कथा के मुताबिक, समुद्र मंथन के वक्त शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक महीने की बारहवीं तिथि को कामधेनु गाय और अगले दिन यानी त्रयोदशी पर धन्वंतरि हाथ में सोने का कलश लेकर और चतुर्दशी को काली मांं और अमावस्या को महालक्ष्मी का समुद्र मंथन के दौरान उत्पत्ति हुई थी। भगवान धन्वंतरि हाथ में सोने के कलश में अमृत भरा हुआ था। उनके दूसरे हाथ में औषधियां थी और उन्होंने संसार को अमृत और आयुर्वेद का ज्ञान दिया। यही वजह है कि इस दिन आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि की पूजा की जाती है।
पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु का अंशावतार होने के साथ ही उनकी चार भुजायें हैं और ऊपर की दोनों भुजाओं में शंख और अमृत कलश है। शेष दो अन्य हाथों में एक में औषधि और आयुर्वेद का ज्ञान है। इनकी प्रिय धातु पीतल को माने जाने की वजह से धनतेरस पर पीतल के बर्तन खरीदने की परंपरा हिंदू धर्म में रही है। कालांतर में उन्होंने अमृत सरीखे औषधियों की खोज कर आयुर्वेद की मान्यता को स्थपित किया था लिहाजा चिकित्सक भी इस दिन उनकी पूजा करना नहीं भूलते।
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