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खुशवंत सिंह से बजरंग पुनिया तक... कब-कब लोगों ने वापस लौटाए पद्म सम्मान!

सम्मान/पुरस्कार

खुशवंत सिंह से बजरंग पुनिया तक... कब-कब लोगों ने वापस लौटाए पद्म सम्मान!

सम्मान/पुरस्कार//Delhi/New Delhi :

बृजभूषण शरण सिंह के सहयोगी संजय सिंह की भारतीय कुश्ती संघ प्रमुख के रूप में नियुक्ति के बाद पहलवान बजरंग पुनिया ने अपना पद्मश्री पुरस्कार लौटा दिया। पुनिया ने लोक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री आवास के बाहर फुटपाथ के पास अपना पद्मश्री रख दिया था। हालांकि, यह पहली बार नहीं था जब विरोध स्वरूप पद्म सम्मान लौटाया गया हो।

बीजेपी नेता और सांसद बृजभूषण शरण सिंह के करीबी संजय सिंह के भारतीय कुश्ती संघ प्रमुख बनने के विरोध में पहलवान बजरंग पुनिया ने अपना पद्मश्री सम्मान लौटा दिया। ओलंपिक पदक विजेता बंजरग का कहना था कि महिला पहलवानों का अपमान होने के बाद मैं अपना जीवन ‘सम्मानजनक’ बनकर नहीं जी पाऊंगा। ऐसी जिंदगी मुझे आजीवन सताती रहेगी। इसलिए मैं यह श्सम्मानश् आपको लौटा रहा हूं। हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि विरोध में पद्म सम्मान लौटाया गया है। किसी घटना के विरोध में पद्म सम्मान लौटाने वाली की लिस्ट में कई अन्य नाम भी शामिल हैं।
खुशवंत सिंह ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में लौटाया
आजादी के बाद ऐसा मामला साल 1954 में दिए गए पद्म सम्मान को लेकर सामने आया था। पूर्व सांसद ओपी त्यागी की तरफ से राज्यसभा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में कहा गया कि स्वतंत्रता सेनानी आशादेवी आर्यनायकम और सामाजिक कार्यकर्ता अमलप्रोवा दास ने व्यक्तिगत आधार पर पुरस्कार (पद्म श्री) स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह को 1974 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उन्होंने 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में इसे वापस कर दिया था। उन्हें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया था। वह 1980 से 1986 तक सांसद रहे। बाद में उन्हें 2007 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
2015 में 33 लोगों ने लौटाए थे सम्मान
रामकृष्ण मिशन के स्वामी रंगनाथानंद ने 2000 में यह पुरस्कार अस्वीकार कर दिया था। उनका कहना था कि यह उन्हें एक व्यक्ति के रूप में प्रदान किया गया था, मिशन को नहीं। इतिहासकार रोमिला थापर के लिए सरकारी सम्मान स्वीकार न करना विरोध का नहीं बल्कि सिद्धांत का मामला था। थापर ने दो बार 1992 और फिर 2005 पद्म पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था। उनका कहना था कि वह केवल ‘शैक्षणिक संस्थानों या पेशेवर काम से जुड़े लोगों से’ पुरस्कार स्वीकार करेंगी। नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के ठीक एक साल बाद सितंबर से नवंबर 2015 के बीच लेखकों और बुद्धिजीवियों द्वारा अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने के 33 मामले सामने आए थे। इसकी शुरुआत 9 सितंबर को हुई जब हिंदी लेखक उदय प्रकाश ने विद्वान एमएम कलबुर्गी की हत्या पर अकादमी की ‘उदासीनता’ के विरोध में उपन्यास मोहनदास के लिए 2010 में जीता गया साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया।
गजेंद्र चौहान की नियुक्ति के विरोध में पुरस्कार वापसी
लगभग एक महीने बाद, लेखिका नयनतारा सहगल और अशोक वाजपेयी ने अपने पुरस्कार लौटा दिए और उनके बाद लेखिका कृष्णा सोबती और शशि देशपांडे ने भी पुरस्कार लौटा दिए। सहगल ने कहा कि ‘भारत की विविधता की संस्कृति’ और ‘असहमति के अधिकार’ पर ‘भयानक हमला’ किया जा रहा है। कई अन्य लोगों ने भी इसका अनुसरण किया, लगभग हर दिन विद्रोह में शामिल होने वाले नए लेखक अपने पुरस्कार लौटा रहे थे। पंजाबी लेखिका दलीप कौर टिवाना ने भी अपना पद्मश्री लौटा दिया। सईद मिर्जा, कुंदन शाह और दिबाकर बनर्जी जैसे निर्देशकों और वृत्तचित्र फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन ने भी ऐसा ही किया। साहित्यिक हस्तियों के साथ एकजुटता और फिल्म के समर्थन में अपने राष्ट्रीय पुरस्कार छोड़ दिए। भारतीय टेलीविजन संस्थान के छात्र उस समय संस्थान के अध्यक्ष के रूप में गजेंद्र चैहान की नियुक्ति का विरोध कर रहे थे।

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Jyoti Bala

By News Thikhana

Senior Sub Editor

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