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इस रेलवे स्टेशन पर हर ट्रेन को देनी पड़ती है सलामी ! वर्ना आगे नहीं बढ़ती रेलगाड़ी?

अजब-गजब

इस रेलवे स्टेशन पर हर ट्रेन को देनी पड़ती है सलामी ! वर्ना आगे नहीं बढ़ती रेलगाड़ी?

अजब-गजब//Rajasthan/Jaipur :

ऐसी मान्यता है कि आज भी टंट्या भील की आत्मा पातालपानी के जंगलों में विचरती है। पातालपानी स्टेशन पर उनका मंदिर बना है, जिसे सलामी देकर ही हर ट्रेन आगे बढ़ती है।

भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। ऑस्ट्रेलिया की पूरी जनसंख्या जितने लोग रोज भारतीय ट्रेनों में सफर करते हैं। भारतीय रेल से कई रहस्यमय और आश्चर्यजनक बातें भी जुड़ी हुई हैं। भारत में ऐसे कई रेलवे स्टेशन पर ही जिन पर कुछ अजीब परंपराओं का पालन आज भी किया जा रहा है। ऐसा ही एक रेलवे स्टेशन है, मध्य प्रदेश में स्थित टंट्या भील रेलवे स्टेशन।

खंडवा के पास स्थित इस रेलवे स्टेशन को पहले पातालपानी रेलवे स्टेशन के नाम से जाना जाता था। इस रेलवे स्टेशन से गुजरने वाली हर ट्रेन यहां रुककर अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले टंट्या भील के मंदिर को सलामी देने के बाद ही आगे बढ़ती है। ऐसी मान्यता है कि अगर लोको पायलट सलामी न दे तो ट्रेन हादसे का शिकार हो सकती है। टंट्या भील को टंट्या मामा भी कहते हैं।

रेलवे ने खुद से बनाया एक अघोषित नियम

वर्षों से इस रेलवे स्टेशन पर यह परंपरा निभाई जा रही है। भारतीय रेलवे ने यहां खुद से एक अघोषित नियम बना लिया है। रेल ड्राइवर यहां पहुंचने पर कुछ देर के लिए ट्रेन रोक देते हैं और सलामी के लिए हार्न बजाकर ही गाड़ी आगे बढ़ाते हैं। टंट्या मामा भील के प्रति यहां के लोगों में अथाह श्रद्धा है। मान्यता है कि टंट्या भील की आत्मा आज यहां के जंगलों में घूमती है।

कौन थे टंट्या भील?

खंडवा जिले की पंधाना तहसील के बडदा में सन् 1842 के करीब भाऊसिंह के यहां टंट्या का जन्म हुआ। टंट्या ने धर्नुविद्या में दक्षता हासिल करने के साथ ही लाठी चलाने और गोफन कला में भी महारत प्राप्त कर ली। युवावस्था में ही अंग्रेजों के सहयोगी साहूकारों की प्रताड़ना से तंग आकर वह अपने साथियों के साथ जंगल में कूद गए और विद्रोह करने लगे।

इंडियन रॉबिन हुड कहलाते थे

अंग्रेज उन्हें इंडियन रॉबिन हुड कहते थे। 1889 में अंग्रेजों ने टंट्या भील को पकड़ लिया। उन्हें पकड़वाने में कई लोगों ने अंग्रेजो की मदद की थी, जिसकी वजह से वे अंग्रेजों के हाथ आए। 4 दिसंबर 1889 को अंग्रेजों ने उनको फांसी दे दी। अंग्रजों ने इन्हें फांसी देने के बाद उनके शव को पतालपानी के जंगलों में कालाकुंड रेलवे ट्रैक के पास दफना दिया। स्थानीय लोगों को कहना है कि टंट्या भील को यहां दफनाने के बाद से ही ट्रैक पर ट्रेन हादसे होने शुरू हो गए।

रेलवे स्टेशन पर बना है मंदिर

स्थानीय लोगों का मानना है कि टंट्या मामा का शरीर जरूर खत्म हो गया था, लेकिन उनकी आत्मा अभी भी इन जंगलों में रहती है। अंग्रेजों के समय में लगातार रेल हादसे होने की वजह से स्थानीय लोगों ने टंट्या मामा का मंदिर बनवाने का फैसला किया। इसके बाद से आज भी यहां मंदिर के सामने प्रत्येक रेल रूकती है और उन्हें सलामी देकर ही आगे बढ़ती है।

ब्रेक चेक करना भी जरूरी

वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि पातालपानी से कालाकुंड तक रेल ट्रैक काफी खतरनाक है। इसलिए यहां ट्रेनों को रोककर ब्रेक चेक किया जाता है। चूंकि यहां मंदिर भी बना हुआ है, इसलिए चालक यहां से सिर झुकाकर अपनी आस्था के अनुसार आगे बढ़ते हैं।

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Jyoti Bala

By News Thikhana

Senior Sub Editor

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