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पुस्तक समीक्षा: संपादित साझा कहानी संग्रह- 'अनकही' में विविध रंगों से सजी मनमोहक कहानियाँ ;समीक्षक : डाॅ. अखिलेश पालरिया

कहानी संग्रह- 'अनकही'

साहित्य

पुस्तक समीक्षा: संपादित साझा कहानी संग्रह- 'अनकही' में विविध रंगों से सजी मनमोहक कहानियाँ ;समीक्षक : डाॅ. अखिलेश पालरिया

साहित्य/पुस्तक समीक्षा/Rajasthan/Jaipur :

डाॅ. अनिता श्रीवास्तव व स्वप्ना शर्मा द्वारा संपादित सद्य कहानी संग्रह- 'अनकही' में कुल 29 कहानियाँ संग्रहीत हैं जो देश के अलग-अलग राज्यों के 29 कथाकारों द्वारा विविध विषयों पर लिखी विभिन्न रंगों से सुसज्जित श्रेष्ठ कहानियाँ हैं। 
आज अधिकांश घरों में झाँकें तो साफ दिखाई देता है कि आदमी ने आदमियत खो दी है...बेशक वैज्ञानिक प्रगति के चलते ऐशो-आराम के साधन न्यूनाधिक रूप से हर घर में विद्यमान हैं लेकिन रिश्तों का दोगलापन सर्वव्यापी है। दादा-दादी की हुकूमत तो छोड़िये, वृद्धजनों की उपस्थिति घरों में अब दिखाई ही नहीं देती। आज बच्चे माँ-बाप तक का कहना नहीं मानते, गुरू (अब टीचर) बच्चों को डाँटने तक से डरते हैं। 

 

आज हर जगह प्रदूषण है...रिश्तों में प्रदूषण, वातावरण में प्रदूषण, आकाश और धरती प्रदूषणयुक्त और मानव-मन में भी प्रदूषण!
शहर हो या गाँव, सर्वत्र जंगल संस्कृति पनप गई लगती है! कहानी संग्रह- 'अनकही' इस जंगल संस्कृति से सीधे साक्षात्कार है! जंगल संस्कृति से उपजी संस्कारहीनता का उपचार साहित्य में छिपा है और यह कहानी संग्रह बच्चों, बड़ों सबको संस्कारवान्, चरित्रवान् बनने की राह दिखाता है, प्रेरित करता है तथा उनमें नैतिकता का बीजारोपण करता है।
संग्रह की बात करें तो इसकी अधिकांश कहानियाँ कथ्य व शिल्प की दृष्टि से खूबसूरत बन पड़ी हैं और पुस्तक घर में पहुँचने का अर्थ है, देश के 29 साहित्यकारों से रूबरू होना!

कुछ कहानियों का जिक्र बहुत आवश्यक है जिसमें कहानी 'अनकही' (डाॅ. अनिता श्रीवास्तव) में लेखिका पति-पत्नी के बीच बिखरी अवांछित वैचारिक गंदगी से पाठकों को रूबरू करवाती हैं और अंततः कुत्सित विचारों से हृदय एवं मस्तिष्क को मुक्त कर सफल सर्जरी कर देती हैं। 

कहानी- 'खण्डित रिश्ते' (रश्मि पारीक) अनैतिक रिश्तों से जुड़ी बेहद सशक्त कहानी है जो अपने उद्वेलित करने वाले कथानक, जानदार संवादों, प्रभावी शिल्प के साथ सीख देती विचारोत्तेजक रचना कही जा सकती है। कहानी में कथाकार अनैतिक सम्बन्धों से जुड़े तमाम तथ्यों का पोस्टमार्टम करती हैं, साथ ही कथा के खलनायक व खलनायिका से तीखे सवालों के जवाब भी चाहती हैं...

'रोटी' (नीलम राकेश) बहुत भावुक करने, आँखों को नम कर देने, सुन्दर शिल्प से सजी, गरीबी का वास्तविक चित्रण करने वाली अनुपम कहानी है जिसे पढ़कर पाठक विचलित तो होता ही है, अपनी नम आँखों को पोंछ कर लेखिका के भावुक मन में झाँक कर उस स्थिति से छटपटाने लगता है जिसमें गरीब जीता है फिर भी खुश रहने की कोशिश करता है।

कहानी- 'कोयला भई, न राख' एक संवेदनशील बेटी की अपनी माँ के प्रति ममता, बलिदान और त्याग की कारुणिक कहानी है जिसमें आरम्भ से अंत तक आँखों को नम कर देने का शाब्दिक रसायन है कि कहानी के शब्द हृदय को विचलित कर देते हैं, एक बार नहीं बल्कि बार-बार! कहानी की कई पंक्तियाँ रेखांकित करने योग्य हैं। सच तो यह है कि सम्पूर्ण कहानी में संवेदनाओं की कोई नदी प्रवाहित हो रही है जो मन को भिगोती हुई दर्द के समंदर का अहसास कराती है।

'टिटहरी' (प्रो. आदित्य कुमार गुप्त) एक बेहद संवेदनशील, मार्मिक, हृदय को द्रवित करने वाली कहानी है जिसमें टिटहरी की भावनाओं को मानव मन से जोड़ कर कथाकार ने एक नव-प्रयोग किया है जिससे कहानी संवेदनाओं के स्तर पर उच्च पायदान पर प्रतिष्ठित हो गई है, साथ ही पाठकों को भाव-विभोर करने में भी सफल हुई है। पाठक यह सोचने को भी विवश हो जाता है कि बेटा अपनी नई-नई पत्नी की संवेदनहीनता से लड़ने में क्यों इतना पिछड़ जाता है कि माँ के अहम रिश्ते की पकड़ भी ढीली पड़ जाती है!

'आज की सिंड्रेला' (सौम्या श्रीवास्तव) समाज की होनहार किन्तु पीड़ित, शोषित, विवश, उपेक्षित और असहाय बालिका के उद्धार की प्रेरक गाथा है। स्वार्थी समाज को राह दिखाती ऐसी कहानियों की आज आवश्यकता है। लोग ऐसी बालिकाओं की पहचान कर उनके अभिशप्त जीवन में खुशियों के रंग भरने को तैयार हों तो समाज का स्वरूप बदल जाए!

'नयी पीढ़ी तुझे सलाम' (डाॅ. नीरू खींचा) में लेखिका ने तर्क-वितर्कों द्वारा कहानी को आरम्भ से अंत तक दिलचस्प बना दिया है। कहानी जितनी दिलचस्प है, उतनी ही मार्मिक भी...इसमें शिल्पगत विशेषताओं के साथ यह बौद्धिक और तर्कसंगत बन पड़ी है। 

'मायके का जादू' (डाॅ. अलका अग्रवाल) घर में वृद्धजनों की सुरक्षा, उनकी उचित देखभाल और उन पर ध्यान केंद्रित करने की सीख देती मनोवैज्ञानिक कहानी है...लेखिका ने सही विश्लेषण किया है कि बुढ़ापा जिस तरह बचपन की पुनरावृत्ति होता है, अच्छा हो यदि हम उनसे उचित व्यवहार, खाने-पीने से लेकर उन्हें घुमाने आदि तक उनकी पसंद-नापसंद का ध्यान रखें तो उन्हें अवसाद में जाने से रोक सकते हैं। जिन्होंने हमारा आजीवन भरपूर ख्याल रखा तो हमारा भी नैतिक दायित्व बनता है कि हम उनकी वृद्धावस्था में उसी तरह परवरिश करें जैसी उन्होंने हमारी की थी। साथ ही उन्हें ऐसी अनुभूति हो कि उन्हें लगे कि यह घर उनका मायका ही है और घर के सब लोग व बच्चे उन्हें बहुत प्यार व सम्मान देते हैं।

'कर्मफल' (डाॅ. रूपा पारीक) दार्शनिक अंदाज में लिखी कहानी है, जिसमें कुछ ऐसे कुपात्रों की दिनचर्या वर्णित है जो नशेड़ी हैं, सुबह का सूरज नहीं देख पाते क्योंकि वे देर रात तक नशे की प्रवृत्तियों में डूबे रहते हैं और सुबह 11 बजे तक बिस्तरों में पड़े रहते हैं। एक प्रेरक कहानी।

आज के स्वार्थी संसार में सेवा को महत्व देने वाले कितने लोग हैं- संभवतः बहुत कम। वह भी जिसकी सेवा की जा रही हो, वह अपने दिवंगत गुरू की वृद्धा पत्नी हो, जिसकी संतान ने भी माँ से मुख मोड़ लिया हो! कहानी- 'सेवा तेरे नाल' (डाॅ. शमा खान) में नायक समीर ने न केवल अपने दिवंगत प्रोफेसर की पत्नी की नि:स्वार्थ भाव से श्रद्धापूर्वक सेवा की बल्कि उनके द्वारा प्रदत्त धनराशि को चैरिटी ट्रस्ट को समर्पित करने का निर्णय कर पाठकों को एक अनुपम संदेश दिया है।

'पुनर्विदाई' (माणक तुलसीराम गौड़) लाड़-प्यार में पली एक उच्छृंखल बेटी की कहानी है जो वास्तव में अवगुणों की खान है। कहानीकार ने आधुनिक भारतीय समाज के एक कुरूप चेहरे के माध्यम से समाज के कई घरों में आज ऐसी बहू का दंश झेल रहे उन परिवारों की व्यथा को भी उजागर किया है जो अपने बेटे के विवाहोपरांत विपरीत परिस्थितियों का सामना करने को विवश हैं।


उपरोक्त कहानियों के अतिरिक्त अन्य कहानियाँ भी पठनीय बन पड़ी हैं। 
पुस्तक का कलेवर सुन्दर है और मुद्रण में शाब्दिक त्रुटियाँ दिखाई नहीं देतीं। 

संपादित कहानी-संग्रह : अनकही
संपादक द्वय : डाॅ. अनिता श्रीवास्तव व स्वप्ना शर्मा 
प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर 
प्रकाशन वर्ष : 2024
पृष्ठ : 183
मूल्य : ₹ 325

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सौम्या बी श्रीवास्तव

By News Thikhana

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