आज है विक्रम संवत् 2081 के भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि रात 07:57 त बजे तक तदुपरांत षष्ठी तिथि यानी रविवार, 08 सितंबर, 2024 परमाणु मिसाइल अग्नि-4 का सफल परीक्षण, चीन-पाक पलभर में खाक पैरालंपिक: प्रवीण कुमार ने भारत को दिलाया एक और गोल्ड राजस्थान: 108 आईएएस के बाद 386 आरएएस अधिकारियों का ट्रांसफर
भारत के इस गांव का अपना संविधान, खुद की संसद भी... यहां नहीं चलता इंडियन कानून

अजब-गजब

भारत के इस गांव का अपना संविधान, खुद की संसद भी... यहां नहीं चलता इंडियन कानून

अजब-गजब//Uttrakhand/Dehradun :

वैसे तो पूरा देश ही भारतीय संविधान और कानून के दायरे में आता है, लेकिन भारत में एक ऐसा गांव भी है, जहां देश का कानून लागू नहीं होता है। इस गांव का अपना अलग संविधान है। यहां के लोगों की अपनी न्यायपालिका, व्यवस्थापिका और कार्यपालिका भी है। गांव के लोगों की अपनी संसद है, जहां उनके द्वारा चयनित सदस्य होते हैं। ये गांव किसी पड़ोसी देश की सीमा पर नहीं आता, ना ही केंद्र शासित प्रदेश के अंतर्गत आता है।

यह गांव हिमाचल प्रदेश में स्थित है। इस गांव का नाम मलाणा है, जो कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के दुर्गम इलाके में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए कुल्लू से 45 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। इसके लिए मणिकर्ण रूट से कसोल से होते हुए मलाणा हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट के रास्ते जा सकते हैं। यहां पहुंचना आसान नहीं है। इस गांव के लिए हिमाचल परिवहन की सिर्फ एक बस ही जाती है, जो कुल्लू से दोपहर तीन बजे रवाना होती है।
गांव में खुद की न्यायपालिका
भारत का अंग होने के बाद भी हिमाचल प्रदेश के इस गांव की खुद की न्यायपालिका है। गांव की अपनी संसद है, जिसमें दो सदन है- पहली ज्योष्ठांग (ऊपरी सदन) और दूसरी कनिष्ठांग (निचला सदन)। ज्येष्ठांग में कुल 11 सदस्य हैं, इनमें से तीन कारदार, गुरु व पुजारी होते हैं, जो कि स्थाई सदस्य हैं। बाकि के आठ सदस्यों को ग्रामीण मतदान करके चयनित करते हैं। कनिष्ठांग सदन में गांव के हर घर से एक सदस्य प्रतिनिधि होता है। संसद भवन के तौर पर यहां एक ऐतिहासिक चैपाल है, जहां सारे विवादों के फैसले होते हैं।
मलाणागांव के नियम भी अलग
कई नियमों में से एक ये है कि बाहर से आने वाले लोग गांव में ठहर नहीं सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद यात्री मलाणा गांव आते हैं और गांव के बाहर ही टेंट लगाकर रुकते हैं। गांव के कुछ नियम काफी अजीब हैं। इसमें से एक नियम है कि गांव की दीवार को छूने की मनाही है। गांव की बाहरी दीवार को कोई भी बाहर से आने वाला व्यक्ति छू नहीं सकता और न ही पार कर सकता है। अगर वह नियम तोड़ते हैं तो उन्हें जुर्माना देना पड़ सकता है। पर्यटकों को गांव के बाहर ही टेंट में ठहरना होता है, ताकि वह गांव की दीवार तक को छू न सकें, मलाणा गांव के लोग कनाशी नाम की भाषा बोलते हैं, जो बेहद ही रहस्यमय है। वो इसे एक पवित्र जुबान मानते हैं। इसकी खास बात ये है कि ये भाषा मलाणा के अलावा दुनिया में कहीं और नहीं बोली जाती है।
बेहद कड़े हैं यहां के नियम
एएफपी हरकोर्ट, गांव का दौरा करने वाले पहले लोगों में से थे, जिन्होंने अपनी पुस्तक-द हिमालयन डिस्ट्रिक्ट्स ऑफ कूलू, लाहौल, एंड स्पीति- में हरकोर्ट ने मलाणा के बारे में लिखते हुए कहा है कि यह शायद कूलू (कुल्लू) में सबसे बड़ी जिज्ञासाओं में से एक है, क्योंकि निवासी पूरी तरह से अपने तक ही सीमित रहते हैं, न तो लोगों के साथ खाना खाते हैं और न ही उनके साथ विवाह करते हैं। किसी अन्य गांव के और ऐसी भाषा बोलते हैं जिसे उनके अलावा कोई नहीं समझ सकता है। उनका कहना है कि मलाणा के लोग न तो जानते हैं कि उनका गांव पहली बार कब बसा था और न ही वे खुद कहां से आए थे। इस पुस्तक में हरकोर्ट ने कनाशी की एक छोटी शब्दावली भी छोड़ी थी।

You can share this post!

author

Jyoti Bala

By News Thikhana

Senior Sub Editor

Comments

Leave Comments