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' मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम '– हमारी सांस्कृतिक धरोहर

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम– हमारी सांस्कृतिक धरोहर

साहित्य

' मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम '– हमारी सांस्कृतिक धरोहर

साहित्य//Uttar Pradesh /Lucknow :

इन दिनों राम नाम से जिस आध्यात्मिक चेतना का संचार हो रहा है वो शायद इस आधुनिक पीढ़ी के लिए नया हो। ‘सिय राम मय सब जग जानी।’ इन दिनों जग के जिस भी कोने में हिंदू रह रहे हैं, वहाँ इसका अहसास किया जा सकता है। चहुँओर सब राम मय है। हर तरफ़ राम राम है। भगवान श्री राम वैसे तो हमेशा कण कण में, जन जन में रहे हैं। अनंत काल तक रहेंगे। लेकिन  क्षणिक सुखों के लिए अपने मूल्यों का पतन करने वाले क्या उनका व्यक्तित्व समझ पाएंगे ? उत्तर प्रदेश के बदायूं की लेखिका दीप्ति सक्सेना की कलम से  :-

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम– हमारी सांस्कृतिक धरोहर

श्री राम सनातन धर्मावलंबियों के पूज्य अवतार ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति के आदर्शों के प्रणेता हैं। श्रीराम का संपूर्ण जीवन एक सर्वश्रेष्ठ पुरुष की मर्यादा के अनुपालन में व्यतीत हुआ, इस कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। राजवंश में सर्व सुख भोगने  के उपरान्त भी त्याग–तपस्या के जीवन को अंगीकार करना कोई साधारण बात नहीं है, वह भी सौतेली माता के स्वार्थ पूर्ति के लिए। स्व सुख की परिधि को तोड़कर यौवन के चौदह वर्ष वनवासी सदृश व्यतीत करना किसी मनुष्य की क्षमता से पूर्णरूपेण बाहर है।

श्री राम एक कांतिमान,विद्यावान, सत्यवादी, विवेकी, शिष्ट, कर्मठ, त्यागी, धैर्यवान, विनम्र, क्षमाशील, योगशक्ति से परिपूर्ण प्रभावशाली व्यक्तिव के स्वामी थे। इस प्रकार भगवान विष्णु के अनंत गुणों में से प्रधान बारह कलाओं (गुणों) को धारण करने के कारण ही वे उनके अवतार माने जाते हैं। यानी ईश्वरीय गुणों से युक्त मानव!!!

श्री राम का जीवन वृत्त हमारी संस्कृतिक धरोहर है। उनका चरित्र चित्रण हमारी विरासत है जो भावी पीढ़ियों के हितार्थ मनुष्यता के संरक्षण हेतु पथप्रदर्शन करती है। देश की उन्नति में उसकी सांस्कृतिक धरोहरों का बहुत बड़ा महत्त्व होता है। श्री राम ने ऐसे प्रतिमान गढ़ दिए हैं जिनका अनुपालन समाज को सही दिशा देता है। राजघरानों में बहुविवाह प्रथा होने पर भी सीता माँ को कभी दूसरा विवाह न करने का वचन देना, संपत्ति या राजसुख हेतु भाइयों के मध्य निर्विवाद स्थिति, माता–पिता–गुरु की आज्ञा को बिना तर्क–वितर्क के स्वीकार करना, उच्च–निम्न के भेद से ऊपर सभी से समभाव से व्यवहार करना, शत्रु के भी गुणों का सम्मान करना, राज्य में समता पूर्ण न्यायपूर्ण प्रणाली, राज्य और धर्म की रक्षा हेतु शस्त्र उठाना आदि कितने ही आदर्शों की स्थापना में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। गरिमापूर्ण जीवनयापन के लिए क्या त्याज्य है और क्या स्वीकार्य, श्री राम चरित्र हमें यही शिक्षा देता है।

विडंबना है कि आज आसुरी प्रवृत्तियों और भ्रष्ट संस्कृतियों के अवलंबियों द्वारा अनावश्यक रूप से श्री राम के अस्तित्व, व्यक्तित्व और कृतित्व पर कुठाराघात किया जाता है।  किसी संस्कृति को मिटाने के लिए उसकी सांस्कृतिक धरोहरों को मिटाना आवश्यक होता है, जिसके क्रम में कई मंदिरों, विश्वविद्यालयों को तोड़ा गया, पुस्तकों को नष्ट किया गया और महापुरुषों के चरित्र और विशिष्टता को षड्यंत्रों द्वारा खण्डित किया गया। हास्यास्पद यह है कि जिनके पास स्वयं अपनी मान्यताओं के प्रमाण नहीं है, वे श्री राम के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं। 

विश्व की विभिन्न संस्कृतियों के संपर्क में आने के कारण समाज में संस्कृति, मूल्य और परंपराओं की बहुत बड़ी हानि हुई है। जनमानस निकृष्ट कर्मों की ओर आकर्षित हो रहा फलतः अपराध बढ़ रहे हैं।आज जहाँ देखो वहाँ मनुष्य मर्यादा का उल्लंघन कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप आये दिन घटित भयावह कथाएँ विभिन्न माध्यमों से प्रकाशित–प्रसारित होती रहती हैं। क्षणिक सुखों के लिए मर्यादा को तार –तार करने वालों को अंत में पछतावे के अतिरिक्त कुछ प्राप्त भी नहीं हो रहा है, फिर भी एक अंधी दौड़ में सम्मिलित है। 

भारतीय संस्कृति और समाज को अधोपतन से बचाने के लिए श्रीराम द्वारा स्थापित मानकों को अक्षुण्‍ण रखना अति आवश्यक हो गया है। सांस्‍कृतिक विरासत संरक्षित करने के लिए भारत में श्री राम पर शोध होने चाहिए। श्री राम ने एकता, धार्मिक समरसता और नैतिकता के आदर्शों को प्रतिष्ठित किया है। मानवजाति के लिए उनके क्रियाकलापों की प्रासंगिकता सार्वभौमिक सार्वकालिक है। रामायण उत्कृष्ट व्यवहार द्वारा जीवन यापन का संविधान है। मिथ्या कहानियों से विलग करते हुए श्री राम और रामायण को विश्व भर में यथासंभव प्रसारित– प्रचारित करना अपरिहार्य है, धर्म के प्रचार नहीं बल्कि मानवता के संरक्षण हेतु।

लेखिका के बारे में  :

"इस लेख की लेखिका दीप्ति सक्सेना विज्ञान शिक्षिका होने के अलावा एक कवियत्री,सम्पादिका तथा काव्यदीप हिन्दी साहित्यिक संस्थान की संस्थापिका हैं।विभिन्न साहित्यिक पुरस्कारों से सुसज्जित लेखिका बाल साहित्य के अलावा हिन्दी भाषा के प्रचार एवं प्रसार में भी अपना अनवरत योगदान दे रही हैं। "
 

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सौम्या बी श्रीवास्तव

By News Thikhana

Comments

  • Deepti Saxena , Jan-19-2024

    लेख प्रकाशित कर विचारों को साझा करने के लिए न्यूज ठिकाना की समस्त टीम का हार्दिक आभार

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