सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लोकसभा सदस्यता बहाल होने का रास्ता साफ कर दिया
अदालत//Delhi/New Delhi :
सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरनेम मानहानि मामले को लेकर राहुल गाँधी द्वारा की गई कथित विवादित टिप्पणी के संबंध में 2019 में दर्ज आपराधिक मानहानि मामले में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाते हुए शुक्रवार को उनकी लोकसभा सदस्यता बहाल होने का रास्ता साफ कर दिया है।
अब राहुल गाँधी जल्द संसद में दिख सकते हैं ,साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 2024 के चुनाव का रास्ता भी साफ होता दिख रहा है। बता दें कि गुजरात के सूरत सेशन कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद उनकी संसद सदस्यता जा चुकी है। 23 मार्च को इस मामले में कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उन्हें दो साल की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल मामले की सुनवाई होती रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने दी राहुल गांधी को सलाह
जस्टिस बी आर गवई, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि टिप्पणी उचित नहीं थी और सार्वजनिक जीवन में भाषण देते समय एक व्यक्ति से सावधानी बरतने की उम्मीद की जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “निचली अदालत के न्यायाधीश द्वारा अधिकतम सजा देने का कोई कारण नहीं बताया गया है, ऐसे में अंतिम फैसला आने तक दोषसिद्धि के आदेश पर रोक लगाने की जरूरत है.”
शीर्ष अदालत गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली राहुल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
याचिका के बारे में
उच्च न्यायालय ने ‘मोदी उपनाम’ से जुड़े मानहानि मामले में कांग्रेस नेता की दोषसिद्धि पर रोक लगाने के अनुरोध वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी. गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने 13 अप्रैल 2019 को कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी सभा में मोदी उपनाम के संबंध में की गई कथित विवादित टिप्पणी को लेकर राहुल के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था। राहुल ने सभा में टिप्पणी की थी कि “सभी चोरों का एक ही उपनाम मोदी कैसे हो सकता है?”
राहुल गांधी के संदर्भ में शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां कीं
1. ट्रायल कोर्ट के आदेश का असर व्यापक है।
2. निचली अदालत के न्यायाधीश द्वारा अधिकतम सजा देने का कोई कारण नहीं बताया गया है, अंतिम फैसला आने तक दोषसिद्धि के आदेश पर रोक लगाने की जरूरत है।
3. इस आदेश से न केवल राहुल गांधी के सार्वजनिक जीवन में बने रहने का अधिकार प्रभावित हुआ बल्कि मतदाताओं का भी जिन्होंने उन्हें चुना था।
4. निचली अदालत और हाई कोर्ट दोनों ने कागज के पुलिंदे भर दिये लेकिन इस पहलू को किसी ने नहीं देखा कि अधिकतम सजा क्यों दी जा रही है। अगर जज 1 साल 11 महीने की सजा देते तो राहुल गांधी अयोग्य घोषित नहीं होते।
5. इसमें कोई संदेह नहीं है कि बयान ठीक नहीं था। सार्वजनिक जीवन में व्यक्ति से भाषण देते समय सावधानी बरतने की उम्मीद की जाती है। राहुल गांधी को बयान देने में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए थी।
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